Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 356
________________ प्रमाणका फळ उत्तर -- अज्ञाननिवृत्ति रूप फलके उत्पन्न होनेपर हान, उपादानरूप फलकी उत्पत्ति होती है। अतः अज्ञाननिवृत्तिरूप फलका व्यवधान होनेसे हान, उपादान रूप फल प्रभागसे भिन्न है । अर्थात् प्रमाण और हान, उपादानके बीच में अज्ञाननिवृत्ति आ जाती है; क्योंकि प्रमाण के द्वारा अज्ञानके हट जानेपर हो वस्तुका ग्रहण अथवा त्याग किया जाता है । किन्तु अज्ञाननिवृत्ति और प्रमाणके बीचमें व्यवधान डालनेवाला कोई नहीं है अतः प्रमाणसे अज्ञाननिवृत्ति अभिन्न है । इस प्रकार 'कारक' हेतुमे प्रमाण और फलमें सर्वथा भेद सिद्ध नहीं होता । Jain Education International नैयायिकोंने जो विशेषण ज्ञानको प्रमाण और विशेष्य ज्ञानको फल कहा है वह भी ठीक नहीं है; क्योंकि विशेषण और विशेष्यका आलम्बन एक हो ज्ञान है 'सफेद वस्त्र' और 'दण्डी पुरुष' यहाँपर विशेषण और विशेष्य में ज्ञान भेदको प्रतीति नहीं होतो, अर्थात् एक ज्ञानसे हा विशेष्य वस्त्र और उसके विशेषण सफेद की प्रतीति होती है । विषयके भेदसे ज्ञानभेद नहीं होता, क्योंकि पाँचों अँगुलियोंके अनेक होनेपर भी एक ज्ञानसे ही उनकी प्रतीति देखो जाती है । तथा विशेषणज्ञान और विशेष्यज्ञानकी जो भिन्न सामग्री बतलायी है वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि शिर्षका निराकरण पहले ही कर दिया गया है । और फिर कार्यभेद होनेपर कारणभेदकी कल्पना करना उचित है; किन्तु यहाँ तो कार्यभेद ही नहीं है । अतः यद्यपि प्रमाण और फल क्रमभावी हैं फिर भो उनमें कथंचित् अभेद मानना ही चाहिए । ३४१ C For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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