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परोक्षप्रमाण
संस्कारसे सहित अन्तिम वर्ण अर्थकी प्रतीति कराता है, इसका क्रम इस प्रकार है-प्रथम वर्णका ज्ञान, उससे संस्कारकी उत्पत्ति, फिर दूसरे वर्णका ज्ञान, पूर्ववर्णज्ञानके संस्कारसे सहित उस ज्ञानसे विशिष्ट संस्कारका जन्म, इसी तरह तीसरे आदि वर्गों के विषयमें भी, अर्थको प्रतीति करानेवाले अन्तिम वर्णके सहायक अन्तिम संस्कार तक, यही क्रम जानना चाहिए। अथवा, शब्दार्थको उपलब्धिमें निमित्त अदृष्टकी नियामकताके कारण, अविनष्ट ही पूर्ववर्णज्ञान और उनके संस्कार अन्तिम वर्णके संस्कारको करते हैं। और उस संस्कारसे उत्पन्न स्मृतिकी सहायतासे अन्तिम वर्ण पदार्थका ज्ञान कराता है। वाक्यसे अर्थका ज्ञान होनेमें भी यही नियम जानना चाहिए। इस प्रकार पूर्वोक्त सहकारी कारणोंको अपेक्षा लेकर अन्तिम वर्ण अर्थका ज्ञान कराता है। अतः स्फोटकी कल्पना निरर्थक है; क्योंकि स्फोटके अभावमें भी उक्त प्रकारसे जब अर्थकी प्रतिपत्ति हो सकती है तो उसके आधारपर स्फोटकी कल्पना नहीं की जा सकती। जब दृष्ट कारणसे ही कार्य उत्पन्न हो सकता है तो अदृष्ट कारणान्तरकी कल्पना करना बुद्धिमत्ता नहीं है।
तथा यदि समस्त अथवा व्यस्त वर्ण अर्थका ज्ञान करानेमें असमर्थ हैं तो वे स्फोटको अभिव्यक्त करने में भी समर्थ नहीं हो सकते। इसका खुलासा-समस्त वर्ण स्फोटकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकते; क्योंकि उक्त प्रकारसे उनका समुदाय नहीं बन सकता। व्यस्त वर्ण भी स्फोटकी अभिव्यक्ति नहीं कर सकते, क्योंकि एक. ही वर्णसे स्फोटको अभिव्यक्ति हो जानेपर अन्य वर्गों का उच्चारण व्यर्थ हो जायेगा। शायद कहा जाये कि पूर्व वर्ण स्फोटका संस्कार करते हैं और अन्तिम वर्ण स्फोटकी अभिव्यक्ति करता है। किन्तु ऐसा कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि स्फोटका अभिव्यक्तिके सिवाय दूसरा संस्कार क्या हो सकता है ? ।
तथा वर्गों के द्वारा होनेवाला यह संस्कार स्फोट ही है अथवा उसका धर्म है। यदि वर्गों के द्वारा किये जानेवाले संस्कारका नाम ही स्फोट है तो स्फोट वर्गों के द्वारा उत्पन्न हुआ कहा जायेगा। यदि वह संस्कार स्फोटरूप न होकर स्फोटका धर्म है तो वह स्फोटसे भिन्न है अथवा अभिन्न है ? यदि वह संस्कार रूप धर्म स्फोटसे अभिन्न है तो वर्गों के द्वारा उसकी उत्पत्ति स्फोटकी ही उत्पत्ति हुई । और ऐसा होनेसे स्फोट अनित्य हो जायेगा। यदि वह संस्कार स्फोटसे भिन्न है तो यह संस्कार स्फोटका है यह सम्बन्ध नहीं बन सकता; क्योंकि वह उसका कुछ उपकार नहीं करता। यदि संस्कार स्फोटका कुछ उपकार करता है तो वह उपकार भी उससे भिन्न है अथवा अभिन्न है ? उन दोनोंविकल्पोंमें पूर्वोक्त दोष आते हैं।
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