Book Title: Jain Nyaya
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 287
________________ जैन न्याय स्मरण करके ही व्यवहारी पुरुष उसका अर्थ जानता है । अतः गावी शब्द में दूसरे प्रकार से ही अन्वयव्यतिरेक बनते हैं । इसलिए अन्वय- व्यतिरेक के आधारपर 'गावी' शब्दको वाचक नहीं माना जा सकता । जहाँ अन्वयव्यतिरेक अनन्यथासिद्ध होते हैं वहीं वे वाचकत्वका नियम करते हैं । किन्तु उक्त प्रकारसे 'गावी' शब्द में अन्वयव्यतिरेक निश्चित नहीं है अतः गावी शब्दके वाचकत्वका नियम नहीं बन सकता । गोशब्द में अन्वयव्यतिरेक तो वादी प्रतिवादी दोनों पक्षोंको मान्य है | अतः गौशब्द ही गोत्वरूप अर्थका वाचक है । तथा सब देशोंमें, सब कालोंमें और सब शास्त्रों में गौशब्द एक ही रूपसे प्रतीत होता है अतः उसे ही वाचक मानना ठीक है । किन्तु 'गावी' आदि भ्रष्ट शब्दों का प्रयोग तो नियतदेश और नियतकालमें कुछ पुरुषों में देखा जाता है अतः 'गावी' शब्द वाचक नहीं है । क्योंकि देशान्तर में रहनेवाले जिन मनुष्योंने 'गावी आदि शब्दों में संकेत ग्रहण नहीं किया वे उन शब्दोंसे अर्थबोध नहीं कर सकते । अतः व्याकरण वगैरह से सिद्ध 'गौ' आदि शब्द ही शुद्ध हैं, उन्हींसे अर्थका बोध होता है । जैसे 'गामानय' ( गौको लाओ ) कहनेपर गलकम्बल से विशिष्ट पशुको लानेका ज्ञान होता है । अतः इससे जैसे यह निर्धारित किया जाता है कि 'गो' शब्दका अर्थ गलकम्बलवाला पदार्थ है' वैसे ही यह नियम भी निर्धारित होता है ' गौशब्दका ही यह अर्थ है' । और इस नियमसे अन्य शब्दोंको गलकम्बलविशिष्ट गाय रूपका अर्थका वाचक माननेमें बाधा आती है । २७२ शंका- 'गौ' आदि शब्द ही वाचक हैं यह नियम आप बनाते हैं तो बनायें किन्तु उन शब्दोंके साधुत्वका समर्थन करनेके लिए व्याकरणकी क्या आवश्यकता है ? वृद्धोंके व्यवहारसे ही उनके वाचकत्वका अवधारण हो जायेगा । उत्तर-व्याकरणके बिना केवल वृद्ध जनोंके व्यवहारसे ही सब शब्दों के वाचकत्वका नियम नहीं बनाया जा सकता । शब्दराशिका अन्त नहीं है । अतः अनन्तकाल में भी वृद्धोंके व्यवहारसे प्रत्येक पदके वाचकत्वका अवधारण नहीं किया जा सकता । किन्तु व्याकरणके द्वारा थोड़े-से प्रयत्नसे ही सब शब्दों के वाचकत्वको जाना जा सकता है । अतः व्याकरणकी आवश्यकता है । शंका - व्याकरणशास्त्र प्रमाण नहीं है, अतः उससे शब्दों के साधुत्वका ज्ञान कैसे हो सकता है ? उत्तर - यदि व्याकरणको अप्रमाण माना जायेगा तो कर्ता, कर्म आदि कारकोंकी व्यवस्था नहीं बन सकेगी । तथा लोक और शास्त्रसे विरोध उपस्थित होगा। क्योंकि सभी शिष्ट पुरुष व्याकरणको प्रमाण मानते हैं तथा सभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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