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परोक्षप्रमाण
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आदिके व्यापारके पश्चात् शब्दको उपलब्धि और तालु आदिके व्यापारके अभावमें शब्दकी अनुपलब्धि देखनेसे यही मानना पड़ता है कि शब्द तालु आदिके व्यापार. से उत्पन्न होता है। ____ अतः पहले जो यह कहा है-'विवादग्रस्त कालमें भी यही गकार आदि थे' वह ठोक नहीं है; क्योंकि उच्चारणके पश्चात् गकार आदिका विनाश प्रत्यक्षसे देखा जाता है। अतः कालान्तरमें उच्चारणके पश्चात् भी गकार आदिका सद्भाव "सिद्ध करनेवाला अनुमान प्रत्यक्षसे बाधित होने के कारण गमक नहीं हो सकता। इस तरह तो बिजली वगैरहको भी नित्य सिद्ध किया जा सकता है। कहा जा सकता है-विवादग्रस्त कालमें भी बिजलो थी; क्योंकि वह भो काल है, जैसे बिजलोसे सम्बद्ध काल । यदि बिजलोको नित्य सिद्ध करना प्रतीतिविरुद्ध है तो शब्दको भी नित्य सिद्ध करना प्रतोतिविरुद्ध है। इसलिए 'शब्द नित्य है क्योंकि श्रवणेन्द्रियका विषय है' इत्यादि कथन भी अयुक्त है। तथा ध्वनिके उदात्त आदि धर्मोंसे हेतु व्यभिचारी भी है; क्योंकि ध्वनिके धर्म उदात्त आदिको श्रवणेन्द्रियके विषय होनेपर भी मीमांसकोंने अनित्य माना है। यदि वे उदात्त आदि धर्म श्रवणेन्द्रियके विषय नहीं हैं तो श्रोत्रके द्वारा शब्दगत धर्म रूपसे उनको उपलब्धि नहीं होनी चाहिए।
तथा जो यह कहा है-'विभिन्न देशों और विभिन्न कालोंमें जो गोशब्द आदि पाये जाते हैं वे सब एक ही गोशब्दके विषय हैं' वह भी ठीक नहीं है। क्योंकि लिपिरूप गोशब्द बुद्धिसे इसमें व्यभिचार आता है । वह भी 'गो' इस उल्लेखपूर्वक उत्पन्न होती है, किन्तु उसका विषय एक ही गोशब्द नहीं है; क्योंकि लिपिरूप गोशब्द देशभेद और कालभेदसे भिन्न होता है।
तथा जो यह कहा है-'जो गोशब्द कल था वही आज भी है' यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि कलके और आजके गो शब्दकी भिन्नता प्रत्यक्षसिद्ध है। अन्यथा कलकी और आजको बिजलीके प्रकाशको भी एक मानना होगा। कह सकते हैं कि कलवाला बिजलोका प्रकाश ही आज भी है; क्योंकि बिजलीका प्रकाश है । यदि प्रत्यक्षसे बिजलीका प्रकाश तीव्र, तीव्रतर आदि रूपसे विभिन्न स्वभाववाला प्रतीत होता है इसलिए उसका ऐक्य सिद्ध करनेवाला अनुमान ठोक नहीं है तो श्रोत्र प्रत्यक्षमें गोशब्द भी तीव्र आदि धर्मोसे युक्त ही प्रतीत होता है अतः उसको भी एक सिद्ध करना ठीक नहीं हैं। यदि शब्दमें तोत्र आदि धर्म औपाधिक है तो बिजलीके प्रकाशमें वे औपाधिक क्यों नहीं है ? शायद कहा जाये कि तीव्र, तीव्रतर आदि धर्मोसे शून्य शुद्ध बिजलीका ज्ञान कभी भी नहीं होता अतः विजलो में तीन्नादि धर्म औपाधिक नहीं हैं तो तोबादि धर्मोंसे शून्य
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