Book Title: Jain Jivan Author(s): Dhanrajmuni Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra View full book textPage 8
________________ प्राक्कथन जिन-किनी भी धर्मको जो कोई मानता हो, उन व्यक्तिके लिए उस चर्मका इतिहास जानना परम आवश्यक है। जैनधर्मका ज्या अर्थ है जैनके मूल सिद्धान्त कौन-कौनसे है ? जैनधर्म के मुख्यप्रवर्तक कौन थे ? इस समय कौनसे नीर्थकरका शासन चल रहा है ? तथा किम तीर्थंकरके शासनकालमे विशेपव्यक्ति कौन थे ? उपरोक्त प्रश्न यदि किमी जैनी-भाईसे कोई पत्र ले और वह वरावर उत्तर नहीं दे सके तो उनके लिए कितनी बडी विचारनेकी बात है, अस्तु ! उनी बानको लक्ष्य करके उम जेन-जीवन नामकी पुग्नकका निर्माण हुआ है। यद्यपि श्री श्रादिनाथपुराण, हरिवंशपुराग, महाभारत एवं श्री महावीरचरित्र श्रादि अनेक प्राचीन-ननन्ध विद्यमान है, फिर भी अतिविन्तृत होने के कारण उनका पढ़ना और समझना हर एक आदमीके लिए अत्यन्त कठिन है। उममें क्या है ? ग्म पुग्नकर्म मुग्यतया श्री ऋापन, मन्लि, अरिष्टननि. पार्य और महावीर उनसे पांच तीर्थकरीकी तथा उनसे सम्बन्ध रनवाले व्यनिविशेषोंकी जीवनियां स गृहीत है। जहा तकPage Navigation
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