Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha View full book textPage 6
________________ ADDWORDPONRVADNNN मटर GRATISAR समर्पण बिरल श्रीयुत् बाबू शिवचरणलाल जी जैन रईस की सेवा में प्रिय शिव! श्रापका अनन्य प्रेम जिस विषय से है उस ही विषय की यह कृति आपके कर कमलों में सादर सप्रेम समर्पित है। मुझे विश्वास है कि आपका जातीय-प्रेमप्लवित है। हदय इस तुच्छ भेट' को स्वीकार कर जात्योत्थान के निमिस हम दोनों को उपर्युक्त कार्य करने के लिये। उत्साहित करेगा। वीर भगवान ! यह शक्ति प्रत्येक जैन । युवक के हृदय में व्याप्तहो, यही भावना है। एवं भवतु! आपका वही: के० पी०'Page Navigation
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