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पिठा बदनाम होते है । यहबात केवल बालिकाओं के लिए ही नहीं है: बालकों की भी छुटपन से श्रादतें बिगड़ जाती ह डोर वे भी कुकर्म कर अल्पायु में हो नृत्यु के ग्रास हो जाते हैं थोर इन नन्हीं विधवाओंको विलखने और पापाचार करने की छोड़ जाते हैं, जिनसे माता पिता बदनाम होते हैं । किन्तु इन में दोष उन्हीं माता पिता का है जो छोटी ही उमर में उनका विवाह करदेते हैं। बालक बालिकाओं को तुशिना नहीं देते, उन्हें अपने भले बुरे लोचने की योग्यता प्राप्त नहीं करने देते, और उनके शरोर हृष्ट पुष्ट नहीं हो पाते कि विषय वासना के शिकन्जे में उन्हें जकड़ देते हैं । बड़ी उमर तक अधिवाहित रखने में वे अपनी नामूसी समते हैं । परन्तु अपनी पुत्र पुत्रियों को व्यभिचारी सुनकर वह नामूखी नहीं समझते 1 इसी दुष्ट प्रथाके कारण आज जैनियों में १५ वर्ष से कम उनकी विधवाएँ १२५६ ले शायद कुछ अधिक ही हैं। इतनी संख्या तो उनकी सन् १६९१ में थी और तब कुल जैन विधवाएँ १५३२७० थीं ! इन विश्वाओं की बढ़ोतरी का कारण यह वाल विवाह ही है । क्योंकि इसके कारण अधिकांश कन्याय १५ वर्ष में ही विधवा होजाती हैं ।
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The chief of these is the system of early marriage and the consequent system of widowhood. An appreciable percentage of girls lose their husbands in India before they are even 15 years of age, and since widow remarriage is prohibited in almost all sections of the Hindus, this large, number of women de
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