Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha

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Page 35
________________ (२८) कम दो वर्ष समाज की सेवा अवैतनिक रूप में करें जिससे समाज में शिक्षाका प्रचार हो। इस क्रियाद्वारा भी पूर्णलास प्राप्त नहीं होगा। इस क्रमले मात्र कुछ विद्वान उत्पन्न हो सकेंगे और यह समाज के ग्रामों में शिना प्रचारही करसकेंगे। इसलिए प्रत्येक शिक्षाके केन्द्र पर जैनवोर्डिग खोलना लाजमी है। उनमें धर्मशिक्षाका प्रवन्ध होना चाहिये । तया स्कालशिप योग्य छात्रोको दीजोय इस बात का प्रवन्ध होना चाहिए तथापि इनके साथही एक भारतीय जैन विश्वविद्यालय की स्थापना कीआयोजना होनी चाहिये । इस विश्वविद्यालय के दोविमाग रहे - एक में लौकिक उच्चकोटिकी शिक्षा का प्रवन्ध हो तथा दूसरे में धार्मिक और सस्कृतादिकी संयोजना हो. अथच इस हो के अन्तर्गत एक जैनशिक्षा समिति हो जो समग्र भारत के जैनियों में प्रारम्भिक और उच्च शिक्षा की व्यवस्था को चालक और बालिकाओं की समान-शिक्षा का प्रवन्ध करना इसके आधीन हो। इस तरहका प्रवन्ध होनेपर ही समाज में योग्य विद्वान उत्पन्न हो सकेंगे और शिक्षाका प्रचार हो सकेगा। छठे कारण वाल्य विवाह के दोषों से अव सभी करीव २ परिचित होगये है। परन्तु तोभी दुःख है कि हम इस प्रथा को नहीं छोड़ते। प्राचीनकाल में हमारे यहां प्रौढ़ अवस्था में अर्थात् पूर्णयुवा होने पर विवाह किया जाता था। परन्तु मुसलमानी समय से यह प्रथा उठगई। उनके डरके कारण छोटी उमर में शादी की जानेलगी और स्त्रियां घरों के अन्दर मूंदकर रक्खी जाने लगी। इससे बड़ा अनर्थ हुया शरीर शक्ति क्षीण होगई। शास्त्रकार ने विवाह का.समय पुरुष का. २० वर्ष की अवस्था में और स्त्री का १६ वर्ष की अवस्था में

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