Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha

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Page 36
________________ (२) बतलाया है जैसे कि जैनाचार्य वाग्मट के निम्न श्लोकले प्रगट है: "पूर्ण पोडशवर्यास्त्री पूर्ण विशेन संगता । । शुद्धगांशये मागें रक्त शुमोऽनिले हृदि । वीर्यवन्तं सुतं सूते ततो न्यूनाद्वयोः पुनः। रोग्यल्पायुरधन्यो वा गर्भो भवति नैव वा ॥" इसमें आचार्य साफतौरसे बतलाते हैं कि यदि कम उमर में विवाह कियाजायगातो अल्यायुफीसंतान होगी अथवा होगी ही नहीं। और वस्तुतः यही दशा आज होरही है। बाल्यविवाह करने का मुख्य कारण आज विवाहके उद्देश्य से अजानकारी है। श्रादिपुराण में विवाह का उद्देश्य संतान उत्पन्न करने और उसकी रक्षा करने में यल करना बतलाया है। विवाह के द्वारा प्रजाका सिलसिला चन्दन होकर धर्मका सिलसिला वरावर जारी रहता है। इससे विवाह का उद्देश्य धार्मिक संतान उत्पन्न करना पाया जाता है। परन्तु यहां इस बात का ध्यान नहीं दिया जाता और मात्र वासनापूर्ति के लिए अल्पायु में विवाह किए जाते हैं जिसके दुष्परिणाम के नमूने यह है : . (१) यचपन में विवाह करने से बालविधवायें बहुत हो जाती है। बचपन में उनके मां बाप कुछभम वा नीति का बोध नहीं कराते हैं, इसलिए वे अपने मनको मारने में असमर्थ हो नरपिशाचों के उकसाने पर अपना धर्म छोड देनी, है और युवावस्था में कुकर्म करने में लग जाती है। फिर अपने कुकर्म छिपाने के लिए उन्हें भ्रूण हत्या करनी पड़ती है। लोग, और सरकार सवही उनको बुरी निगाह से देखते हैं। इससे माता

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