Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha

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Page 60
________________ (५३) शेष कारणों में विवाहमें बाधक अन्य कारण गोत्रोको टालने और जन्म पत्रियां मिलाना आदि हैं। इनका विचार स्थानीय 'पञ्चायत कर सकती है। इन बाधाओं का हटानाउपयोगी है। एक प्रवल कारण क्षति का आपसी विरोध है। यह शिक्षा के प्रचार से मिट सकता है। श्रतएव शिक्षा प्रचार का विशेष प्रबन्ध होना चाहिये। साथ ही धर्मायतनों का हिसाव प्रतिवर्ष प्रकट नहीं किया जाता, वह भी इस विरोध का कारण है। इस का भी प्रवन्ध होना चाहिये । तथापि पञ्चायतों में निष्पक्ष भाव से निर्णय होना चाहिये, इस बात का महत्व जनता को समझाना आवश्यक है। । पञ्चायती संगटन में दृढतानाने से ही वास्तविक सुधार हो सकेगा। इसमें सबसे पहिले इस सुधार की आवश्यकता है कि जातीय पक्ष को निकाल दिया जाय! आजकल पञ्चायतों में जातीय पक्षपात चर्म-सीमा को बढ़ा हुआ है। यक्ष नक कि उसके समक्ष-धार्मिक सिद्धान्त का भी खयाल नहीं किया जाता है। एक सम्यग्हटी-जिनधर्म के श्रद्धानी के लिये आतिमद, कुलमद पापोपार्जन के कारण बताये हैं। भाजकल लोग इस बात की तनिक भी परवाह नहीं करते। यह जातीय पक्षपात परस्पर रोटी येटी व्यवहार के खुलने से बहुत जल्दी दूर होजायगा। अतएव पचायतों के जातीय एव व्यक्तिगत पक्षपात से शून्य होने के लिये आवश्यक है कि उनका यथो. चित संगठन किया जाय । प्रत्येक पञ्चायत का उहश्य हो कि वह स्थानीय मन्दिर आदि धार्मिक संस्थाओं एवं सामा'जिक दशा की उन्नति का प्रबन्ध करे। उन उह श्यों की सिद्धि सुचारु रीति से हो सके इसके लिये प्रत्येक पंचायतों को अपने नियम सर्वसम्मति से बना लेना चाहिये। जैसे प्रत्येक

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