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(३६) चाहिए । पञ्चायतों की शक्ति को बढ़ाना हम लोगों के हाथमें है" । ( जैनहितैषी भाग १३ पृष्ठ ४८)। उनकेद्वारा इस प्रकारके नियम बनालेना चाहिये कि ३५ वर्ष की अवस्था के उपरान्त वाले पुरुषों के और रुपए देकर विवाह करनेवाले के विवाह में कोई भी सम्मिलित नहीं होगा। और इसका पालन जव पञ्चायत में सब करने लगेंगे तो फिर यह दुष्प्रथा शीघ्र ही मिट जायगी।
सन् १९२१ की सरकारी मनुष्य संख्या रिपोर्ट के आधार पर जो उद्गार एक नव युवक ने पञ्जाव और देहली प्रान्तके सम्बन्ध में 'चोर' में प्रकट किए हैं उनसे जाना जाता है कि उस प्रान्त के जैनियों में प्रति सहन पुरुषों के पीछे कुल ५३ त्रिय है। जिनमें विधवायें भी सम्मिलित हैं। इस प्रान्त की विधवा वहिनों की संख्या का दिग्दर्शन करने से बूढ़े वावाओं की करतूतों और सामाजिक अधःपतन का खासा अन्दाजाहो जाता है। १५ से १६ वर्षकी आयु की विधवाय प्रतिशत निम्न प्रकार है:
जैन ३१२ (सवातीन प्रतिशत से अधिक); हिन्दू ३१ (तीन प्रतिशत), मुसलमान २18 (तीन प्रतिशत से कम), सिक्ख ११७(पौने दो प्रतिशत से कम)। . वहीं एक से लेकर ३६ वर्ष की विधवायें प्रति सहन इस प्रकार थीं:- सन् १९०१ में न ५६; हिन्दू ४७, मुसलमान ३०; सन्-१९२१ में जैन ७६, हिन्दु ४६ और मुसलमान २६ । जो हाल पजाब का है वही शेष प्रान्तोका है। इसलिए सामाजिक सुधार के लिए शीघ्रतम तैयार होजाइये। ।