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(३४) - मनास और हाल में पञ्जाव और युक्तमान् श्री ध्रपेना अविक है । इस प्रकार कस उम्र में शादी करने से भारत का दिखनहीं है। इसलिए जैन समाज भी उस दृप्रशासे लाभ नहीं उठा सकती। बाल विवाह के कारण ओ जनि बच्चों को होती है उसके विषय में हम पहितही कहनुके हैं। उक्त पुलक में भी बच्चों की अधिक मत्य का कारण उतझी मानाओ की अल्पायु वतलाईहै और कहा है कि वर्ष से कम उमर की स्त्री के जो बच्चा उत्पन होता है वह बच्पन शो में यदुधा मर जाता है और यह खेद जनक घटना उन माताको जनन शक्तिपर भी हारिज होती है । फलतः वह ३५ ग ४० वर्ष में वृद्धा हो जाती है। इस वालविवाह के कारण भारत के बार; सभी नवयुवक भी पेशाव, पेचिश या दुखार के रोग से जुड़ी रहते हैं। यहाँ पेशाव की बीमारियोंसे सारी दुनियासे अधिक तोग मरते हैं। फ़ी सैकड़ा १५ नवयुवक र गेगी के प्रास बनते हैं । (देश दर्शन पृष्ठ १३०)। अतएव प्रत्यायन है कि इस बाल विवाह के कारण जनजाति हो नही मात्र भारतही गारत हुआ जाता है । 'यदि कन्याओं का विवाह २५ घर्ष से कम की आयु में न लेता तो जैनिया में जार विमाय न होती । वे सधवा होकर कम से कम मालीस हजारग्नुप उपस्न करतो, जिससे जैनिया कानाश यालाच रुक जाता।
(जैन हितपोभाग.१३ पृ )
- इसलिए इसका रोकता परमावश्यक है। साधारण जनता मैं इसके दुष्परिणाम का परिचय कराने के लिए छोटे हेतु बिल और ट्रक्ट वांटना चाहिये। उपदेशको और मसागर पनी द्वारा इसके विरुङलोकसत खड़ा कर देना चाहिए। फिर