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किस तरह निशाह किया जाय १ सो पहिले तो शास्त्रों में इस धात का निषेत्र कहीं मिलता नहीं और यदि हम प्रथमानुयोग के चरित्र ग्रन्थों में दढे तो हमें उल्टा ही माजरा मिलता है। राजा श्रेणिक अजैन थे और उनकी रानी चेलिनी जैन थी, कवि धनजय जैन थे और उनकी स्त्री वौद्ध थीं। ऐसे ही खोजने से और भी उदाहरण मितसकते हैं। इनसे प्रमाणित है कि हमारे पूर्वज-धर्म का भी कुछ ख्याल नहीं रखते थे। परन्तु यदि आप एकदम इत्तनो लम्बो छलांग मारने को तैयार नहीं हैं तो लोहाचार्य प्रभृति इस काल के प्राचार्यों का अनुकरण कीजिये । इन प्राचार्यों ने विविध विधर्मी लोगों को जैनी बनाया
और उनका परस्पर में विवाह सम्बध खुलवा दिया। आरा.धना कथाकोष में एक से अधिक कथाएँ ऐसी है कि जिनसे प्रमाणित होता है कि जब कोई विधर्मी जैनी हो जाता था तो उससे विवाह सम्बन्ध खोल लिया जाता था। आदि पुराण में दीक्षान्वयक्रियाय इसही वात को लक्ष्य कर दीगई है।
अतएव ऐसी दशा में इस समय जो अविवाहित पुरुष हैं उन्हें अन्य जातियों से विवाह करने को प्रामा पचायतों से मिलनी चाहिये ऐसा प्रबन्ध किया जाय । रहा इसमें शुद्धा. शद्धि का विचार सो यदि इसमें अशुद्धि होती तो हमारे आचार्यगण ही क्यों ऐसा विधान कर जाते और पूर्व पुरुष दयों इस प्रकार के विवाह करते। आजकल भी बहुत से नराधम नीच जाति की स्त्रियों से गुप्त प्रेम रखते हैं और वह समाज में मान्य है । पर उनसे कोई अशुद्धि फैलती नहीं सुनाई पड़ती है तिस पर इस विषय में श्रादिपुराण जी में साफ कहा है कि 'जो हिंसा करता है वह अन्याय करता है और अन्याय करने घाला ही अशुद्ध है, और जो दया करता है, वह न्यायवान है