Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
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(३५)
ऐसा नियम करा देना चाहिए फि जब
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बालक र बालिका मोड़ न हो तबतक उन्हें किसी अच्छे गुण के अधीन कर विद्याध्ययन करायें। मठ होने और शिल्पाने बाद उनका विवाह योग्य पुत्रों में किया जाय । रागमन (गाना) करने की आवश्यकता नहीं । इसलिये इस प्रथा को हटाना होगा।
सातवें और थावे कारण वृद्ध विवाह और श्रन्सेल विवाह एक दो कोटि में थाजाते है। वृद्ध विवाह भी अनुमेत विवाह ही है। वहाँ ६० श्रीरम की मिसाल है तो दूसरी ओर ८ और १२ अथवा ६ ओर म का गठजोडा है । इन भेल सत्य के कारण मनुष्य जीवन मुतमय नहीं बीत सकता। इस कारस विवाह के उद्दश्च सिद्धि के लिए प्रोढ़ावस्या के योग्य बालक बालिका का सम्वन्ध करना चाहिए । यद्यपि हमने वृद्ध विवाह का समावेश अनमेल विवाह से कर दिया है, परन्तु ga विवाह से अधिक शनि होती है। यह विदित हो है कि "अन समाज में कन्याओं की सुरया बहुत ही कम है। इससे हजारो नवयुवकों को यही बाग. रहा पड़ता है। उस पर चूढे लोग अपनी कई २ शादियां करके और भी उनका हम सारदेते है । जो कथा किसी दुक्का से शादी करके पूर्व जीवन व्यतीत करती, और अनेक पुत्र कन्याओं की माना होधी, घटी एक कुठे खूसट के पजे में फँसकर दुःखों के पां पड़ती है, तथा रोगी सन्तान की माता होती है और शीघ्र at farer are दुराचारों की वृद्धि करती है। इसलिए वृद्ध विवाह को दुष्प्रया को शीघ्र ही यन्द करना चाहिए । इसके लिए पति को यन्न करना

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