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(२२) होती। स्त्रियों को मृत्यु के मुख से बचाने के लिये श्रारण्यक है कि सामाजिक नियमों में उचित सुधार किया जाय। श्रीर इस आशङ्का से बचने के लिये उनमें पुरुषों के साथ चिकित्सा झान का प्रचार करना चाहिए। जिससे जीवन के स्वास्थ्यवर्धक नियमों का पालन हो सके। ययोंकि यह प्रकट है कि अनुकूल' शुद्ध सात्विक भोजन से, निर्मल जल और पवित्र वायु सेवन से, स्वच्छ हवादार कमरों में रहने से, बल और पौरुर को हानि न पहुंचाने वाली दिनचर्या से, शारीरिक बल और पराक्रम बढानेवाले व्यायाम (कसरत)ले,नेशन याराणीयता का क्षय करने वाले दो प्रधान कारण-घोर दरिद्रता और अत्यन्त अधिक धनाढयता-का सपूर्ण विनाश फरदेने से, ब्रह्मचर्य के पश्चात् योग्य और आरोग्य सन्तानोत्पत्ति से, स्वास्थ्यरना ओर उत्तम चिन्सिाशास्त्र के मान से, स्त्री और पुरुष की सामाजिक और मानसिक दशा बगवर ऊनी करने से, देश के सुखी होने से और शान्तिमय पवित्रजीवन व्यतीत करते रहने से, मनुष्य चाहे अजर और अमर न हो जाय: पर उसके जन्म और प्राकृतिक मरण के बीच का समय अर्थात् आयु बहुत बढ़ जायगी ओर परावर बढ़ती रहेगी।"
(देखो देशदर्शन पष्ठ ६४) चौथा कारण निर्धनता चा दरिद्रता भी उक्त का सहगोमो है। इस के कारण भी विशेष हानि उठानी पड़ती है। क्योंकि 'दरिद्रता से लज्जा उत्पन्न होती है। लज्जायुक्त अपने अधि. कार से गिर जाता है। अधिकार से गिरे हुए का अपमान होता है। अपमान और तिरस्कार से दुःख और दुख से शोक उत्पन्न होता है। शोक से बुद्धि हीन होती है और निबुद्धि नाश को प्राप्त होता है । इस प्रकार देखा जाता है कि