Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay Author(s): Kamtaprasad Jain Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha View full book textPage 5
________________ (ख) जैन संगठनों में समाज सुधार की चर्चा उठ खड़ी हुई। उस ही के अनुरूप मेरे उक्त प्रिय मित्र ने अपनी प्रदत्त रकम से इस पुस्तक को जैनजाति में विना मुल्य वितरण का आयोजन किया। उसी अनुरूप यह पुस्तक श्री संयुक्तप्रान्तीय दि० जैन सभा की ओर से प्रकट हो रही है। विश्वास है कि समाज के प्रमुख पुरुष और उत्साही नव-युवक इससे समुचित लाभ उठावेगे । एव अपनी सामाजिक दशा का परिचय प्राप्त कर उसको समुन्नत बनाने में अग्रसर होंगे। अव भी ढील की तो मरण सन्मुख ! खसकती कोर पर खड़े ही हो, जरा ठेस लगी कि अरर धम! इस दशा से वचो और जीवित जाति वनो। जिससे कोई आपके धर्म और आपकी समाज का अपमान न कर सके। विशेष किमधिकम् । रक्षावन्धन २४५१ ) -समाज हितैषी अलीगञ्ज (एटा) कामताप्रसाद जैन,Page Navigation
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