Book Title: Jain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Sanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha

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Page 8
________________ जैनजाति के हास होने के कारण और उनके दूर करने के शास्त्र सम्मत उपाय ! "हम कौन थे क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी। आयो, विचार आज मिलकर ये समस्याएं सभी ॥" -भारत भारती ___"जैन जाति के हास होने के कारण और उनके दूर करने के शास्त्र सम्मन उपायों के विषय में लिखने के पहिले वैज्ञानिक अनुरूप में यह जान लेना आवश्यक है कि जैन जाति है क्या? वह कब से है ? और उसकी पूर्व में क्या दशा रही है। इन बातों के जाने बिना कोई भी व्यक्ति उसके हास के विषय में एक दम लेखनी को प्रवृत्त नहीं करेगा । अतएव जैन जाति के सम्बन्ध में उपरोक्त जटिल प्रश्न पर विचार करने के पहिले सामान्यता से उसका पूर्वदर्शन करना प्रासंगिक है।

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