Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 11
________________ अङ्क ६-१० ] मद्रास श्रादि प्रान्तों में कपड़ा बुनने आदि जैसे पवित्र धन्धे करनेवाली श्रनेक जातियाँ भी अछूत मानी जाती हैं । इन लोगोंकी दशा सुधारने के लिए हमारे देशका सुधारक दल लगभग श्राधीशताब्दी से अपना कण्ठ सुखा रहा है । श्रार्यसमाज, ब्रह्मसमाज आदि नये धर्मसमाज ने भी इसके लिए बहुत कुछ आन्दोलन किया है; परन्तु हिन्दू जनताकी विशाल कछुए की पीठको भेदकर उसके ज्ञानतन्तु श्रौतक इस आन्दोलनकी खबर पहुँचाने में अभी तक ये सब उपाय प्रायः असफल ही रहे हैं। मुट्ठीभर पढ़ेलिखे लोगों के दिमाग़ में स्थान पा जानेके सिवाय और कोई विशेष उल्लेखनीय फल इसका नहीं हुआ । साधारण जनता इसको किस्तानी या ईसाइयत चर्चा समझकर इससे अलग ही रही । अस्पृश्यता निवारक श्रान्दोलन । परन्तु अबकी बार इस नये आन्दोलनका जन्म एक दूसरे ही रूपमें हुआ है । लक्षणोंसे जान पड़ता है कि विशाल हिन्दू समाजकी कच्छप- पीठको भेदकर यह आन्दोलन उसके स्नायुचक्रपर भी अधिकार कर लेगा । कच्छप महाराजको अब करवट बदलनी ही पड़ेगी । धर्मक्षेत्रको छोड़कर अबकी बार इसने राजनीतिक क्षेत्रमें जन्म लिया है और उस राजनीतिक क्षेत्र में जन्म लिया है जिसमें देशके जीवन मरण की समस्या हल हो रही है। पहले यह राजनीतिक क्षेत्र भी अँगरेज़ी पढ़े-लिखे लोगोंकी चहल-कदमीकी जगह थी। परन्तु अब उसमें शिक्षित, अशिक्षित, पण्डित, बाबू, किसान, व्यापारी, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी श्रादि सभी श्रेणियोंके लोगोंका समावेश हो गया है और उन सबका यह पक्का विश्वास हो गया है कि इस क्षेत्रमें ही हम चिरकालकी दासता से मुक्त होंगे। २ Jain Education International २६५ देशकी इस श्राशा भरोसे की जगह में जन्म लेनेके कारण भी इस आन्दोलन के सफल होने की बहुत कुछ श्राशा की जा रही है। आशाका एक कारण और भी है। और वह यह है कि इस आन्दोलनकी घोषणा उस महात्माने की है जो वर्तमानमें देशका एकछत्र का सा सम्राट् है, जिसका प्रभाव महलोंसे झोपड़ियोतक है, जिसके पवित्र साधु जीवनने देशके सभी धर्मों और सम्प्रदायोंके हृदयपर अधिकार प्राप्त कर लिया है और जिसके वचनोंपर सर्वसाधारणकी श्राचर्यजनक श्रद्धा है । महात्मा गान्धीके इस प्रभाव के कारण ही इस श्रान्दोलनकी घोषणा देशकी सर्वप्रधान महासभा (कांग्रेस) के मञ्चपरसे हुई है और देशके प्रायः सारे प्रतिनिधिं इसके पृष्ठपोषक हैं। भारतवासी बीसों धर्मों, सम्प्रदायों और पन्थोंमें विभक्त हैं और उनमें ऐसा कोई प्रेम-बन्धन नहीं है कि एक धर्म या सम्प्रदाय द्वारा स्वीकृत कोई बात दूसरा धर्म या सम्प्रदाय माने । परन्तु देशके राजनीतिक क्षेत्र में सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग एक होकर काम कर रहे हैं और देशकी चरम सीमा पर पहुँची हुई दुःख- दैन्यावस्थाने इस समय प्रायः प्रत्येक देशवासीको एकताके सूत्रमें बाँध दिया है। संभीका यही एक ध्येय और एक धर्म बन गया है कि चाहे जितने कष्ट सहकर भी देशको स्वाधीन करना चाहिए । वर्तमान अस्पृश्यता निवारक आन्दोलन इसी सर्वधर्मानुयायियों के एक धर्मक्षेत्र - राजनीतिक क्षेत्र - से शुरू किया गया है और इससे श्राशा है कि इसका प्रभाव किसी एक धर्म या सम्प्रदायतक न रहकर देशव्यापी होगा ! राष्ट्रीय महासभाका प्रधाने उद्देश्य है— देशको पराधीनता से मुक्त करना, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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