Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 37
________________ अङ्क -१० त्रुवल्लुव नायनार त्रुकुरल। २९१ चाहता है, वह उस मनुष्यके समान है अच्छे हैं जो मूर्ख हैं चाहे उनका वंश जो बिना शतरंजके तख्तेके शतरंज खेलना कितना ही ऊँचा हो। चाहता है। ४१०-मनुष्य वही है जो विद्यालं४०२-जो मनुष्य निरा मूर्ख है, कृत है। शेष मनुष्य पशुओं के समान हैं। परन्तु सभामें बोलनेको उत्सुक रहता है ४२-श्रवण । . वह उस स्त्रीके समान हैं जिसके कँख नहीं है। ४११-वह सम्पत्ति जो बड़े ध्यान के ४०३-जो मनुष्य अपनी मुर्खताको साथ सुननेले उपार्जन की जाती है, समझकर विद्वानोंकी उपस्थितिमें मौन सम्पत्तिकी सम्पत्ति अर्थात् महान् धारण किये रहते हैं, वे भी एक तरहसे सम्पत्ति है। ऐसी सम्पत्ति संसारकी योग्य समझे जाने चाहिएँ। सम्पूर्ण सम्पत्तियोंसे श्रेष्ठ है। ४१२- x x x . ४.४-मूनोंके मुँहसे कभी कभी ४१३-जिन लोगों में उत्तमोत्तम समयानुकूल शब्द भी निकल जाते हैं । शिक्षाओंको श्रवण करने की शक्ति है वे परन्तु जो बुद्धिमान हैं वे उन्हें बुद्धिमानी यद्यपि इस जगत्में उत्पन्न हुए हैं, तथापि से बोला हुश्रा नहीं समझते। देवताओंके समान हैं। ४०५-यदि कोई मनुष्य बिना कुछ ४१४-कोई व्यक्ति शिक्षित न भी सीखे हुए अपनेको बड़ा समझता है तो हो, तो भी उसे सदैव उपदेश श्रवण उसकी बड़ाई उस समय जाती रहेगी करने दो। कारण, कठिनाई के समय वह जब वह किसी विद्वान्के सामने बोलेगा। उसे लकड़ीका सहारा देगा, अर्थात् ४०६-जिस प्रकार बंजर भूमिमें न आपत्तिसे बचा देगा। कुछ पैदावार ही होती है और न उससे ४१५-जिस प्रकार लकड़ी मनुष्यजावाका पालन हाता है, उसा प्रकार को चिकनी मिट्टी पर गिरनेसे बचाती मुर्ख मनुष्य केवल आत्मगौरवसे ही हीन है उसी प्रकार उन पुरुषोंके शब्द, जो नहीं होते किन्तु संसारको भी कुछ लाभ सन्मार्गमें चलते हैं, चाहे वे अशिक्षित नहीं पहुँचाते। ही हों, उस व्यक्तिको सहारा देते हैं जो ४०७-जिस मनुष्यको अनेक शास्त्रो शिक्षित होकर भी अपने मार्गसे च्युत . का गहरा शान नहीं है वह उस खिलोन- होगया। के समान है जिसे मिट्टीके आभूषण ४१६-प्रत्येक मनुष्यको अच्छी बातें पहनाये गये हैं। सुननी चाहिएँ, चाहे वे कितनी ही ४०:-विद्वान्को जितना कष्ट निधं. जतना कष्ट निधं साधारण और छोटी क्यों न हो। क्योंकि नताके कारण होता है, उससे कहीं अधिक ऐसा करनेसे उसका ज्ञान बढ़ेगा और कष्ट अज्ञानीको धनके कारण होता है। ज्ञानके बढ़नेसे वह महत्ता प्राप्त करेगा। ४०४-मुखौंका कुल चाहे जितना ४१७-जिन मनुष्यों को शास्त्रोका पूर्ण ऊँचा हो, पर वे उन नीच कुलवालोसे ज्ञान है और जिन्होंने बहुत कुछ श्रवण भी नीचे हैं जो शिक्षासम्पन्न हैं। अर्थात् भी किया है वे कभी असावधानीले भी जो मनुष्य शिक्षित हैं वे चाहे नीचे कुलमें मूर्खताके शब्दोंका प्रयोग नहीं करते। भी उत्पन्न हुए हों, परन्तु उन मनुष्योंसे ४१८-उस श्रोताको बहरा समझना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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