Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 47
________________ अङ्क ४-१०] ऐलक-पद-कल्पना। ३०१ . किया जाय । वास्तवमें, खोज करनेसे, लेकर समितिसहित मौनपूर्वक भिक्षाके ऐलक पदकी कल्पना बहुत पीछेकी और लिए भ्रमण करता है। यह उत्कृष्ट श्रावक बहुत ही आधुनिक जान पड़ती है। अतः ११ वी प्रतिमाके धारकके सिवा दूसरा आज हम इसी विषयके अपने अनु- कोई मालूम नहीं होता, और इसलिए संधानको अपने पाठकोंके सामने रखते यह स्वरूप उसीका जान पड़ता है। हैं। आशा है कि विज्ञ पाठक इसपर भले परन्तु इस सब कथनसे ११ वी प्रतिमाप्रकार विचार करेंगे। और साथ ही, वालेके लिए 'उद्दिष्टविरत' और 'उत्कृष्ट ११वीं प्रतिमाके स्वरूप में समय समय पर श्रावक' के सिवाय दूसरे किसी नामकी जो फेरफार हुआ है, अथवा प्राचार्य उपलब्धि नहीं होती। आचार्यके मतानुसार उसमें जो कुछ - २-स्वामि समन्तभद्राचार्यने अपने विभिन्नता पाई जाती है, उसे ध्यानमें 'रत्नकरण्डक' नामके उपासकाध्ययन रक्खेगः-- । (श्रावकाचार) में, श्रावकके ग्यारह पदों १- भगवत् कुन्दकुन्दाचार्यके चारित्त- (प्रतिमाओं) का वर्णन करते हुए, ११ वीं पाहुड (चारित्र प्राभृत) ग्रन्थमें यद्यपि प्रतिमाके धारक श्रावकका जो स्वरूप. एक गाथा द्वारा* ग्यारह प्रतिमाओंके वर्णन किया है, वह इस प्रकार हैनाम पाये जाते हैं, परन्तु उनके स्वरूपा. .. गृहतो मुनिवनमित्वा दिकका कोई वर्णन उक्त ग्रन्थमें नहीं है और न आचार्य महोदयके किसी दूसरे गुरूपकंठे व्रतानि परिगृह्य । उपलब्ध ग्रन्थमें ही इन प्रतिमाओंके भैक्ष्याशनस्तपस्यन्नुत्कृष्टस्वरूपका निर्देश है । हाँ, मुत्तपाहुड श्वेलखण्डधरः ॥ १४७ ॥ (सूत्र प्राभृत) ग्रन्थमें एक गाथा इस अर्थात्-घरको छोड़कर मुनि-वनमें प्रकारसे असर पाई जाती है जाकर और गुरुके निकट व्रतोंको ग्रहण दुइयं च वुत्तलिंगं उकिट्ठ करके, जो तपस्या करता दुप्रा भिक्षा___अवरसावयाणं च। भोजन करता है और खण्ड वस्त्रका धारक है, वह उत्कृष्ट श्रावक है। .... भिक्खं भमेइ पत्तो इसमें ११वीं प्रतिमावाले श्रावकको समिदीभासेण मोणेण ॥२२॥ 'उत्कृष्ट श्रावक'के नामसे निर्दिष्ट किया है। इसमें मुनिके बाद दूसरा उत्कृष्ट चेलखण्डधारी या खण्डवस्त्रधारी नामलिंग उत्कृष्ट श्रावकका-गृहत्यागी या की भी कुछ उपलब्धि होती है, और अगृहस्थ भावकका-बतलाया गया है उसके लिए १ घर छोड़कर मुनिवन , और उसके स्वरूपका निर्देश इस प्रकार- (तपोवन) को जाना,२ वहाँ गुरुके निकट से किया गया है कि, वह पात्र हाथमें व्रतोंका ग्रहण करना, ३ भिक्षा भोजन करना, ४ तपस्या करना और ५ खण्ड• वह गाथा इस प्रकार है वस्त्र रखना, ये पाँच बातें जरूरी बत. दंसणवयसामाइय पोसह सचित्त रायभत्तेयं । बंभारंभ परिग्गह अणुमण उद्दिट्ट देसविरदेदे ॥२१॥ लाई हैं। यही गाथा वसुनन्दि श्रावकाचारके शुरूमें नम्बर ४ ___३-भगवजिनसेनप्रणीत आदिपुराणपर पाई जाती है । और गोम्मटसारके संयममार्गणाधिकार- में, यद्यपि ग्यारह प्रतिमाओंका कथन नहीं में भी वही गाथा दी हुई है। है, परन्तु उसमें गर्भान्धव और दीक्षान्वय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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