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.३० . जैनहितैषी।
[भाग १५ नामका श्रावक है। उसके लिए मुनिके है। संभव है कि उसी परसे और उसी पश्चात् दातारके घरमें जाकर भोजन दृष्टिको लेकर यहाँ पुलिंगमें इस संशाका । करने, भोजन न मिलने पर नियमसे प्रयोग किया गया हो। परन्तु कुछ भी उपवास करने और गुरुशुश्रूषा तथा हो, इन सब विकल्पोको छोड़कर वह तो सपश्चरणादिक को करते हुए हमेशा मुनि- स्पष्ट ही है कि पं० आशाधर जीने इस वनमें रहने का विधान किया है। और द्वितीयोत्कृष्ट श्रावकको 'आर्य' नामसे अनेकभिक्षानियम नामके श्रावकके वास्ते नामांकित किया है, 'ऐलक' नामसे नहीं। अनेक घरोसे उस वक्त तक भिक्षाकी प्रस्त: पं. श्राशाधर जीके वे सब पद्य जो याचना करते रहनेका विधान किया है, इस विषयमें वसुनन्दी आचार्यकी ऊपर जबतक कि खोदर-पूर्तिके योग्य भिक्षा उद्धृत की हुई गाथाओं के साथ समानता एकत्र न हो जाय ।
या असमानता रखते हैं, इस प्रकार हैं:(ङ) द्वितीयोत्कृष्ट श्रावककी संज्ञा
तत्तद्वतास्त्रनिर्भिन्न- . . 'प्रार्य दी है, जब कि वसुनन्दी आचार्यने
श्वसनमोहमहाभटः। इस श्रावकके लिए किसी खास संज्ञाका निर्देश नहीं किया और न दूसरे ही किसी
उद्दिष्टं पिंडमप्युज्झेपूर्वाचार्यने, जिनका कथन ऊपर दिया
दुत्कृष्टः श्रावकोऽन्तिमः ॥३७॥ गया है, ११ वी प्रतिमाधारीश्रावकके लिये स द्वेधा प्रथमःश्मश्रुइस संशाका कोई विधान किया है, बल्कि __ मूर्धजानपनाययेत् । पूज्य प्रतिष्ठितादि अर्थवाचक यह सामा- सितकौपीन संव्यानः न्य संशा अनेक आचार्यों द्वारा अनेक ___ कर्तर्या वाटुरेण वा ॥३८॥ प्रकारके व्यक्तियोंके लिए व्यवहृत हुई स्थानादिषु प्रतिलिखेत् पाई जाती है। श्रीसमंतभद्राचार्यने तो
मृदूपकरणेन सः । इसे जिनेंद्र भगवान्को-तीथंकरोंको--
कुर्यादेव चतुष्पासम्बोधन करने तकमें प्रयुक्त किया है ।
मुपवासं चतुर्विधम् ॥३९॥ यथा
स्वयं समुपविष्टोऽद्या. ... 'ममार्य देयाः शिवतातिमुच्चैः ।"
त्पाणिपात्रेऽथ भाजने । "त्वमार्यनक्तं दिवमप्रमत्तवान्...।"
स श्रावकगृहं गत्वा " . त्वया स्वतृष्णासरिदार्य शोषिता।"
पात्र पाणिस्तदंगणे ॥४०॥ बृहत्स्वयंभुस्तोत्र । . स्थित्वा भिक्षां धर्मलाभ .. असि, मसि और कृषि प्रादि कर्म ___भणित्वा प्रार्थयेतृवा । करनेवालों को भी 'आर्य' कहते हैं। ऐसी
मौनेन दर्शयित्वांगं हालतमें इस संज्ञासे यद्यपि यहाँ कोई
___ लाभालाभे समोऽचिरात् ॥४१॥ खास विशेषत्व मालूम नहीं होता और न
निर्गत्यान्यद्गृहं गच्छेयह संज्ञा इस प्रतिमाधारी पुरुषके लिए
- द्भिक्षोयुक्तस्तु केनचित् । कुछ रूढ ही पाई जाती है, तो भी स्त्रीलिगमें 'मार्या ( या आर्यिका ) शब्द एक
भोजनायार्थितोऽद्यात्तसाधु वेषधारिणी स्त्रीके लिए रूढ़ जरूर
द्भुक्त्वा यद्भिक्षितं मनाक् ॥४२॥
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