Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 72
________________ * Reg. No. A. 1050. टीका लिखवाई है और मलसहित छप. समझना हो और एक बढ़िया काव्यका वाया है। जो जैनधर्मके जाननेकी इच्छा अानन्द लेना हो तो श्राचार्य सिद्धर्षि के रखते हैं, उन प्रजैन मित्रोंको भेटमें देने बनाये हुए 'उपमितिभवप्रपचाकथा' योग्य भी यह ग्रन्थ है। मूल्य 2) नामक संस्कृत ग्रन्थके हिन्दी अनुवादको प्रायश्चित्त संग्रह। अवश्य पढ़िये। अनुवादक श्रीयुत नाथूराम संस्कृत और प्राकृतके इस अपूर्व प्रेमी / मूल्य प्रथम भागका // ) और द्वितीय संग्रहमें चार प्राचीन और नवीन प्राय- भागका / -) जैन साहित्यमें अपने ढंगका श्चित्त ग्रन्थ छापे गये हैं। अभी तक ये यही एक ग्रन्थ है। कहीं भी नहीं छपे थे। मुनियों, आर्यिकाओं संस्कृत ग्रंथ / / और श्रावक श्राविकाओके सभीके प्राय- 1 जीवन्धर चम्पू-कवि हरिचन्द्रकृत 11) श्वित्तोंका वर्णन है। मू०१) 2 गद्यचिन्तामणि-वादीभसिंहकृत। 2) मूलाचार सटीक 3 जीवन्धरचरित-गुणभद्राचार्यकृत / 1) मूल प्राकृत और वसुनान्दि प्राचार्य- 4 क्षत्रचूड़ामणि-वादीभसिंहकृत। मू०१) कृत संस्कृत टीका पूर्वार्ध। मू. 2 // 5 यशोधरचरित-वादिराजकृत। मू०॥) उत्तरार्ध छप रहा है। चरचा समाधान / पं. भूधर मिश्र नियमसार। कृत / भाषाका नया ग्रन्थ / हालही में छपा भगवत्कुन्दकुन्दाचार्यका यह बिलकुल है। मूल्य 2 // ) ही अप्रसिद्ध ग्रन्थ है। लोग इसका नाम जैन ग्रन्थोंका सूचीपत्र भी नहीं जानते थे। बड़ी मुश्किलसे प्राप्त अभी हाल में ही छपकर तैयार हुश्रा करके यह छपाया गया है। नाटक समय है। मिलनेवाले तमाम ग्रन्थों की सूची है। सार श्रादिके समान ही इसका भी प्रचार जिन सजनोंको चाहिए वे एक कार्ड होना चाहिए / मूल प्राकृत,संस्कृतच्छाया, लि लिखकर मँगा लें। मैनेजरप्राचार्य पद्मप्रभमलधारि देवकी संस्कृत जैन-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, टीका और श्रीयत शीतलप्रसादजी ब्रह्मा हीराबाग, पो. गिरगाँव, बम्बई / चारीकृत सरल भाषाटीकासहित यह श्राविका। छपाया गया है। अध्यात्मप्रेमियोंको अवश्य स्त्रीधर्म, गृहउद्योग आरोग्य और शिस्वाध्याय करना चाहिए / मूल्य 2) दो रु०। क्षण सम्बन्धी उत्तम लेखोंसे स्त्रीवर्गमें पाश्वेपुराण भाषा। अच्छी प्रसिद्धिको प्राप्त हुई यह गुजराती कविवर भूधरदासजीका यह अपूर्व पत्रिका मासिक रूपसे प्रकाशित होती है। ग्रन्थ दूसरी बार छपाया गया है। इसको प्रत्येक अङ्कमें विषयामुसार खास चित्र कविता बड़ी ही मनोहारिणी है। जैनियोंके कथाग्रन्थों में इससे अच्छी और सुन्दर भी रहते हैं / वार्षिक मूल्य तीन रुपये। कविता आपको और कहीं न मिलेगी। पता-श्राविका आफिस-भावनगर / जैन। विद्यार्थियों के लिये भी बहुत उपयोगी है। जैन' नामका यह गुजराती पत्र बिना शास्त्रसभाओं में बाँचनेके योग्य है / बहुत पंथभेदके हर एक घरमे पढ़ा जाना चासुन्दरतासे छपा है। नू० सिर्फ 1) रु.। हिये / अढाई रुपये की 'जैगऐतिहासिक कथामें जैनसिद्धान्त। वार्ताः भेट में दिये जानेपर भी वार्षिक एक मनोरंजक कथाके द्वारा जैनधर्म- मल्य डाक खर्च सहित पाँच रुपये है। की गूढ़ कर्म फिलासफीको सरलतासे मैनेजर 'जैन-भावनगर / Printed & Published by G. K. Gurjar at Sri Lakshmi Narayan Press, Jatan har Benares City, for the Proprietor Nathuram Premi o: Bombay 217.21. Jain Education International -. . -For Personal &Private Use only www.jainelibrary.org

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