Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 10
________________ २६४ जैनहितैषी। । [भाग १५ प्रसिद्ध बोल्शेविक नेता लेनिन धनि- वस्तु बन गई है। अपरिचित विदेशी यह योंको 'अभागा' या 'बेचारा' कहता है। नहीं समझ सकता कि एक मनुष्य ईसा मसीह. भी धनियोंके लिए यही दूसरे मनुष्यको छूनेसे परहेज़ कर सकता विशेषण लगाते हैं। है और छू जाने पर उसे स्नान करनेकी आवश्यकता हो सकती है। परन्तु हम धनी और श्रीमन्त लोग जब गरीबों- लोग उसे अपने धर्म और आचारका के लिए कुछ करते हैं, तब वह 'धर्म' या एक अङ्ग समझते हैं। कुत्ता, बिल्ली आदि 'दान' कहलाता है। परन्तु जब गरीब हिंस्र पशुओं तकको हम प्रसन्नतासे लोग श्रीमन्तोंके लिए कुछ करते हैं तो अपनी बगलमें बैठा सकते हैं, परन्तु वह 'बलवा' या 'अराजकता' कहलाता है! किसी भङ्गी या चमारसे यदि हमारा पल्ला छू जाय, तो हम उसे बरदाश्त नहीं तू जितना ही धन संग्रह करेगा, कर सकते । उस हतभागे भङ्गी या उतना ही दूसरोंको भूखों मारेगा और चमारको तो हमारे पवित्र वचनोंका कुछ उतना ही तेरे सिर कर्ज चढ़ेगा। न कुछ प्रसाद मिलेगा ही, साथ ही हम 'x. x. x x स्वयं भी स्नान आदिके प्रसादसे वंचित . जितना जितना तू देता रहेगा, उतना नहीं रहेंगे ! हमारे इसी भाचरण के संशोउतना ही दूसरों को लूटनेका पाप धोता धनके लिए इस आन्दोलनका जन्म जायगा ।* ___ भारतवर्षकी जनसंख्या ३० करोड़के लगभग है। इनमेंसे ७,६३,६२,६७७ अस्पश्यता निवारक आन्दोलन मनुष्य हमारे लिए अस्पृश्य हैं। अर्थात . और हमारे देशके लगभग एक चौथाई मनुष्य ऐसे हैं जिन्हें हम मनुष्य ही नहीं समझते महात्मा गांधी और जो पशुओंसे भी अधम जीवन । (ले०-श्रीयुत पं० नाथूरामजी प्रेमी) व्यतीत करते हैं। हमारी हजारों वर्षोंकी इस समय देशमें एक बड़े भारी उपेक्षासे इनकी अवस्था ऐसी शोचनीय हो आन्दोलनको सृष्टि हुई है और प्रत्येक गई है कि उसका वर्णन ही नहीं हो सकता। धर्म, सम्प्रदाय और जातिमें उसकी वे अक्षर-शत्रु हैं, उनका आचरण बहुत ही चर्चा हो रही है। उसका नाम है अस्पृ. गिर गया है, शराब आदि दुर्व्यसनोंने श्यता-निवारण । । उन्हें तबाह कर दिया है, भरपेट भोजन विदेशियों के लिए अस्पृश्यता एक उन्हें नसीब नहीं होता और संक्रामक आश्चर्य की चीज है; परन्तु हम लोगोंके बीमारियोंका सबसे पहला हाथ उन्हींपर लिए यह एक सहज और स्वाभाविक साफ होता है। इन अस्पृश्योंमें केवल वे ही लोग -यह सब विचारपालरिशर' नामक एक विद्वान् के . नहीं हैं जो पास्त्राना साफ करते हैं, हैं। इन्हें 'नवजीवनने अन्य विचारकि साथ, 'एरोज आफ पशुओंको चीरकर उनका चमड़ा निका. फायर' नामक पुस्तक से उदधृत किया था, और वहीं से यहाँ पर अनुवादित किया गया है। लते हैं अथवा ऐसा ही कोई दूसरा नाथूराम प्रेमी। धन्धा करते हैं। बल्कि गुजरात, बंगाल, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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