Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 15
________________ अङ्क 8-10] अस्पृश्यता निवारक आन्दोलन । . ___“अस्पृश्यता को जब तक हिन्दू होगा, तबतक हमारे यहाँ लक्ष्मी नहीं समाज जान बूझकर धर्म समझता है पानेकी। और असंख्य हिन्दू अन्त्यजों को छूने में पाप "और तुम स्वंय "ढेढ़ ऊँचा और समझते हैं, तब तक स्वराज्य मिलना भंगी नीचा," इस भ्रममें क्यों पड़े हुए हो? अशक्य है...जिन जुल्मोंके कारण हम ढेढ़ और भंगीमें कुछ भी फर्क नहीं है। अँग्रेजी सल्तनतको राक्षप्ती कहते हैं, "मेरी समझ में तो दोनों का ही पेशा उनमेंसे ऐसे कौन कौनसे जुल्म हैं जो हम वकालत या सरकारी सेवा से किसी अन्त्यजों के साथ नहीं करते? तरह कम प्रतिष्ठाका नहीं है। " ____ "इस मैलको धोकर हमें स्वच्छ हो अस्पृश्यताके सम्बन्धमें महात्माजीके जाना चाहिए । जबतक ऐसा न हो, तब एक मित्र ने तीन शंकाएँ की थी। उनका तक स्वराज्यकी चर्चा कोरा वितण्डा- उत्तर उन्होंने अपने नवजीनमें (१३ वाँ वाद है। जबतक दुबलोंकी रक्षा न हो, विशेषांक) जो कुछ लिखा था, उसके कुछ एक भी मनुष्यका दिल स्वराज्यवादीके अंश ये हैहाथसे दुखे, तबतक यह निस्सन्देह है _ "मेरी अल्प बुद्धि के अनुसार भंगी पर कि स्वराज्य नहीं मिल सकता ।...... जो मैल चढ़ती है, वह शारीरिक है और तत्काल ही दूर की जा सकती है। ___ "दुर्बलों की रक्षा करने के बदले हम परंतु असत्य, पाखण्ड आदिकी मैल ऐसी उन्हें कुचलते हैं। ऐसे दोषोंको जबतक सूक्ष्म होती है कि उसका धोना बहुत ही हम निकालकर नहीं फेंक सकते, तबतक कठिन है। अतएव यदि हम किसीको यदि हम भेड़ों और पशुओंसे भी निकम्मा अस्पृश्य गिन सकते हैं तो वे हैं असत्य जीवन व्यतीत करें तो इसमें आश्चर्य और पाखण्ड रूपी मैलसे भरे हुए लोग। नहीं होना चाहिए। परन्तु उन्हें अस्पृश्य गिननेकी तो ____“नेलोर में मैं अन्त्यज भाइयों से हमारी हिम्मत ही नहीं होती। क्योंकि मिला था। वहाँ मैंने ईश्वरसे प्रार्थना की हम सभीमें इस प्रकारकी थोड़ी बहुत थी कि यदि मैं आगे जन्म लूँ तो अन्त्यज मैल चढ़ी रहती है। यदि हम ऐसा करने होकर ही जन्मूं और उनके दुःखोंका बैठे तो सारे संसारके काजी बनने अनुभव करूँ। मैं ब्राह्मण, वैश्य या शूद्र जैसी बात हो और हम स्वयं ही अस्पृश्य ही नहीं, अति शूद्रके घर जन्म लेना हो जायँ। इस सच्ची मलिनताके लिए चाहता हूँ। हमारे पास धीरज और अपनी प्रान्तरिक ___"मैं सारे हिन्दुस्तान के अन्त्यजों- स्वच्छताके सिवा दूसरा कोई उपाय का निकट परिचयी बन गया हूँ।मैं देखता नहीं है। परन्त भंगीकी मलिनता तो हूँ कि अन्त्यज जातियों में जो शक्ति है हड्डियों में नहीं बैठती। उसके दूर करनेका उसको वे स्वयं नहीं जानती और न दूसरे उपाय तो बहुत ही सहज है। उन्हें यदि हिन्दू ही जानते हैं । अन्त्वजों की बुद्धि हम अपना बना लेंगे, तो वे अवश्य साफ कुमारिका के समान निर्दोष है । भाइयो, होकर रहने लगेंगे। तुम बुनने, कातने और धुनने का धन्धा "डाकृरोंका पेशा चीर-फाड़ करने. सीख लो। इससे तुम्हारी दरिद्रता चली और मैल साफ करने आदिका ही है। बायगी। जबतक चरखे का पूजन न यदि उन्हें चौबीसों घंटे चीर-फाड़ करने Jain Edudation International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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