Book Title: Jain Hiteshi 1921 Ank 05 06
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granthratna Karyalay

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Page 29
________________ अङ्क 4-१०] मानकी मरम्मतका अनोखा उपाय । २८३ मार्गमें बाधा डालनेवालोंकी कैसी दुर्दशा कार्रवाई की जायगी ! परन्तु जब रामकी जाती है। लाल जीने माफी माँगनेसे इन्कार किया,, __यह एक गूढ़ प्रश्न है कि बैनाडाजीने तब पद्मावती पुरवालके पिछले अंकमें पण्डितोंपर जो आक्षेप किया है, उसके तीर्थक्षेत्र कमेठीके नाम एक गुमनाम उत्तरमें हम लोग कयों घसीटे गये ? खुली चिट्ठी छापी गई जिसमें कमेटीके गेहूँके साथ बेचारे घुन भी पीसे गये। जो अधिकारियोको सुझाया गया कि रामलोग संस्थाके एक मात्र कर्ता, हर्ता और लाल ऐसा बुरा श्रादमी है उसके विचार विधाता बने हुए हैं, उनके लिए बैनाड़ा. अमुक तरहके हैं; इसलिए उसे कमेटीके जीका यह आक्षेप कि "वे सदा खेलते हैं दफरसे अलग कर देना चाहिए ! बाबू और उनपर कई हजार रुपयों का कर्ज हो रामलालजीका अपराध यह है कि गया है। इसमें सन्देह नहीं कि असह्य उन्होंने बैनाडाजीके उस लेखकी पुष्टि हुमा होगा । परन्तु उसका सारा क्रोध की थी जिसमें पण्डितोपर सट्टा खेलने हम पर क्यों निकाला गया? इसका कारण और कर्जदार होनेका श्राक्षेपथ ।। वे सिवाय इसके क्या हो सकता है कि जो बहुत दिन पहलेसे कमेटीमें और दूसरी लोग अपनेको निरपराध सिद्ध नहीं कर संस्थानों में काम कर रहे हैं और उनके सकते, वे अपने क्रोधका वेग इसी तरह, विचार भी जैसे श्राज हैं; वैसे ही पहलेसे जो सामने आया उसीके ऊपर, आक्रमण हैं। परन्तु इसके पहले कभी पण्डित महाकरके हलका किया करते हैं। यह क्रोध- शयोंने उनका कमेटी में रहना आपत्तिजनक का प्रावेश ही • था जो तमाम जैन- नहीं समझा। परन्तु ज्योंही उन्होंने संस्थाओके शुभचिन्तक ब्रह्मचारीजी पर पण्डितोंको सट्टेबाज़ बतलाया, त्योंही भी यह अपराध लगानेसे न चूका कि कमेटीके नाम खुली चिट्ठी छाप दी गई। "वे सत्यका खून करनेवाले हैं, उनका इन सब बातोंसे पण्डित महाशयोंके क्रोधभीतरी हृदय काला है और वे माणिक- के आवेशका स्पष्ट पता लगता है और चन्द ग्रन्थमालाका ही बार बार स्मरण तब पाठक समझ सकते हैं कि उन्होंने किया करते हैं, जैनसिद्धान्त प्रकाशिनी इस आवेशके समय जो लेख लिखे हैं, संस्थाका नाम भूल जाया करते हैं।" उनमें न्याय-अन्याय और सत्य-असत्यका और यह सर्वथा मिथ्या कषायपूर्ण प्राक. कितना खयाल रक्खा गया होगा। मण इसलिए किया गया कि ब्रह्मचारीजी परन्तु यह स्पष्ट है कि इतने यद्वा. पं० गजाधरलाल और श्रीलाल जीके उस तद्वा लेख लिखकर भी पण्डित महाशय बहुत जरूरी (१) लेखको समय पर प्रका. अपनेको निर्दोष सिद्ध नहीं कर सके। शित नहीं कर सके जो जैनगजट भादिमें और न इस अनोजे उपायके द्वारा वे अपने छप चुका था और जिसके प्रतिवादमें मानकी कुछ मरम्मत ही कर सके हैं। हम लोग यह लेख लिख रहे हैं। यदि उन्होंने हम सब लोगोंको दोषी, इसके बाद ही तीर्थक्षेत्र कमेटीके विरोधी और पक्षपाती भी सिद्ध कर मैनेजर बाबू रामलालजीको उक्त पंडित दिया, तो भी वे स्वयं तबतक निर्दोष महाशयोंने यह नोटिस दिया कि तुम नहीं बन सकते जबतक लोगोंको यह फौरन माफी माँगकर हमारे मानकी मर- प्रमाण न दिखला दिया जाय कि उन्होंने म्मत करो, नहीं तो तुम पर बाकायदा न तो कभी सट्टा बेला और न उनपर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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