Book Title: Jain Dharm me Aachar Shastriya Siddhant Part 03
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 10
________________ सौरभ', 'बुधजन भजन सौरभ', 'भूधर भजन सौरभ', 'भागचन्द भजन सौरभ', 'जैन न्याय की भूमिका', 'न्याय दीपिका', 'न्याय-मन्दिर', 'द्रव्यसंग्रह', 'आचार्य कुन्दकुन्द : द्रव्यविचार', 'समयसार', स्याद्वाद : एक अनुशीलन' आदि का प्रकाशन किया जा चुका है जिनमें जैनधर्मदर्शन के सिद्धान्तों, उसके सांस्कृतिक मूल्यों को सरल सहज रूप में प्रस्तुत किया गया है। उसी क्रम में 'जैनविद्या संस्थान' द्वारा 'जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त' का प्रकाशन किया जा रहा है। संस्थान से शोध-पत्रिका के रूप में 'जैनविद्या' का प्रकाशन किया जाता है। वर्तमान में संस्थान के माध्यम से जैनधर्म-दर्शन एवं संस्कृति का अध्यापन पत्राचार के माध्यम से किया जा रहा है जिसका लाभ देश के विभिन्न भागों में रहनेवाले लोग उठा रहे हैं। 'जैनधर्म में आचारशास्त्रीय सिद्धान्त' में दस अध्याय हैं जिनमें जैन आचार के विभिन्न आयामों को चित्रित किया गया है। हमारा विश्वास है कि यह पुस्तक सामान्यजन एवं विद्वानों के लिए आधारभूत पुस्तक के रूप में उपयोगी होगी और जैनधर्म-दर्शन के अध्ययनार्थियों के लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम के रूप में चलायी जा सकेगी। डॉ. कमलचन्द सोगाणी जो देश-विदेश के ख्यातिलब्ध विद्वान हैं और दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी की प्रबन्धकारिणी कमेटी के सदस्य हैं, उन्होंने अपने द्वारा लिखित अंग्रेजी पुस्तक के हिन्दी अनुवाद का स्वयं ही सम्पादन करके अनुवाद को प्रामाणिक बना दिया है। इसके लिए हम अपनी गौरवपूर्ण प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। डॉ. वीरसागर जैन, अध्यक्ष, जैनदर्शन विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली ने जैनधर्म-दर्शन के (X) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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