Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 13
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२ महाराज की आज्ञानुसार मंत्री ने तत्काल नगर में भेरी बजवा दी "हे नगरवासीजनो ! आज हम सभी को मुनिवरों के दर्शन हेतु राजा साहब के साथ वन में चलना है, अतः शीघ्र ही राजदरबार में एकत्रित होइए । " भेरी का मंगल नाद सुन प्रजाजन शीघ्र ही द्रव्य-भाव शुद्धि के साथ अपने-अपने ● हाथों में अर्घ्य की थाली लेकर राजदरबार में एकत्रित हुए । राजा बालि गजारूढ़ हो अपने साधर्मियों के साथ मंगल भावना भाते 11 हुए वन की ओर चल दिये। राजा साहब देखते हैं कि आज तो जंगल की छटा ही कुछ निराली दिख रही है, मानों गुरु हृदय की परमशान्ति का प्रभाव वन के पेड़-पौधों पर भी पड़ गया हो। इन सबके अन्दर भी तो शाश्वत परमात्मा विराजमान है और आत्मा का स्वभाव सुखशान्तिमय है। ये सभी सदा दुःख से डरते हैं और सुख को चाहते हैं, भले ही इनमें ज्ञान की हीनता से यह ज्ञात न हो कि मेरे परमहितकारी गुरुवर पधारे हैं, परन्तु अव्यक्त रूप से उनकी परिणति में कुछ कषाय की मन्दताजन्य शान्ति का संचार अवश्य हो रहा है। ऐसा ही निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध है। प्रत्येक आत्मा को भगवान स्वरूप देखते हुए, विचारते हुए राजा बालि साधर्मियों सहित पूज्य गुरुवर के चरणारविंदों के समीप जा पहुँचे । सभी ने पूज्य गुरुवर्यों को हाथ जोड़कर साष्टांग नमस्कार किया, तीन

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