Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 82
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ 80 साहित्य प्रकाशन फण्ड ४०१/- रु. देने वाले - तेजस देवचन्द शाह, हैदरावाद २५१/- रु. देने वाले ढेलाबाई चैरिटेविल ट्रस्ट, खैरागढ़ ह. शोभा-मोतीलाल जैन, खैरागढ़ श्री ओजस्वी भव्य ह. श्रद्धा जिनेश जैन, खैरागढ़ श्रीमती चन्द्रकला-प्रेमचंद ह. श्रुति अभयकुमार जैन, खैरागढ़ श्री श्वेता-उमेश, वंदना-महेश छाजेड़, खैरागढ़ । झनकारीबाई खेमराज बाफना चैरिटेविल ट्रस्ट, खैरागढ़ श्री कंचनदेवी-पन्नालाल ह. मनोजकुमार गिड़िया, खैरागढ़ ब्र. ताराबेन मैनाबेन जैन, सोनगढ़ सौ. मनोरमा-विनोद कुमार जैन, जयपुर रुनझुन चुनमुन कोथरा भिलाई एन.एस. लीला चौधरी, भिलाई २०१/- रु. देने वाले - श्रीमती धर्मिष्ठा-जिनेन्द्र कुमार जैन, दुर्ग सहज नियति ह. श्रीमती समता-अमित जैन, कानपुर श्रीमती ममता-रमेशचन्द जैन, जयपुर १५१/- रु. देने वाले - श्रीमती रक्षा-रवीन्द्र कुमार जैन, दुर्ग १०१/- रु. देने वाले - श्रीमती साधना-संजय ढोसानी, भिलाई प्रीति बैन सुभद्रा बैन, अहमदावाद अन्याय से उपार्जित धन जबर्दस्ती लाई हुई स्त्री के समान अधिक समय नहीं टिकता। जैसे धनी के गुणों से आकर्षित स्त्री हमेशा रहेगी, वैसे ही न्यायोपार्जित लक्ष्मी अधिक समय तक टिकी रहेगी। नीति वस्त्रों के समान है और धर्म आभूषण के समान है। जैसे कपड़ों के बिना आभूषण शोभा नहीं देते वैसे नीति के बिना धर्म शोभा नहीं देता। - दृष्टि का निधान : पूज्य श्री कानजीस्वामी राप्रपा प्रप E NTIR

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