________________
जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२
(थोड़ी देर के लिए एकदम शान्ति छा जाती है।) श्रेणिक - (खड़े होकर) हे प्रभो ! आत्मा की मुक्ति का मार्ग क्या है ? कृपया हमें बताकर कृतार्थ करें।
(परदे में से दिव्यध्वनि की आवाज आती है।) ओ....म्....! द्रव्य-गुण-पर्याय से जो जानते अरहंत को।
वे जानते निज आत्मा दृगमोह उनका नाश हो॥ अहो जीवो ! द्रव्य से, गुण से और पर्याय से अरिहंत भगवान . के स्वरूप को जो जीव जानता है वह आत्मा का वास्तविक स्वरूप जानता है और उसका दर्शन-मोह जरूर क्षय को प्राप्त होता है।
हे जीवो ! आपका आत्मा भी अरिहंत भगवान जैसा ही है। जैसा अरिहंत भगवान का स्वभाव है वैसा ही तुम्हारा स्वभाव है। उस स्वभाव सामर्थ्य को आप पहचानो, उसकी प्रतीति करो। यह ही मुक्ति का मार्ग है। समस्त अरिहंत भगवंतों ने ऐसे ही मार्ग को अपनाकर मुक्ति प्राप्त की है और जगत को भी ऐसा ही मुक्ति के मार्ग का उपदेश दिया है।
हे जीवो ! आप भी पुरुषार्थ से इस मार्ग को अपनाओ।
श्रेणिक-अहो, प्रभो ! आपका दिव्य उपदेश सुनकर हम पावन हो गये हैं, हमारा जीवन धन्य हुआ।
अभय - प्रभो ! इस संसार-समुद्र से मेरी मुक्ति कब होगी?
दिव्यध्वनि - (परदे में से) हे भव्य ! आप अत्यन्त निकट भव्य हो, इस भव में ही आपकी मुक्ति होगी।
अभय - प्रभो ! मेरे पिताजी को मुक्ति कब होगी ? दिव्यध्वनि - (परदे में से) श्रेणिक महाराज को क्षायिक
उहामा।