Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 73
________________ 71 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ चेलना - अहो, धन्य अवतार ! साक्षात् भगवान मेरे आँगन में पधारे। मेरे हृदय के हार पधारे। हृदय के हार आओ। त्रिलोकीनाथ पधारो ! सेवक को पावन करके भव से पार उतारो। ___ अभय - अहो, मेरे नाथ पधारे ! मुझको इस संसार समुद्र से छुड़ाकर मोक्ष में ले जाने के लिए मेरे नाथ पधारे। चेलना - चलो महाराज ! हम भगवान के दर्शन करने चलें, और भगवान का दिव्य उपदेश प्राप्त कर पावन होवें। श्रेणिक - हाँ देवी चलो ! सम्पूर्ण नगरी में मंगल भेरी बजवाओ कि सब जन भगवान के दर्शन करने के लिए आयें। लो माली ! यह आपको बधाई का इनाम। (राजा गले में से हार आदि निकालकर देते हैं और तत्काल ही समस्त प्रजाजनों के साथ बड़े ही धूमधाम से हाथ में पूजा की थाली लेकर प्रभु दर्शन को चले जाते हैं।) चलो चलो, सब हिल-मिल कर आज, महावीर वंदन को जावें। चलो चलो, सब हिल-मिल कर आज, प्रभुजी के वंदन को जावें। गाजे-गाजे जिनधर्म की जयकार, वैभारगिरि पर जावें । - (गाते-गाते जाते हैं, परदे के पीछे जाकर फिर आते हैं। रास्ते में दूसरे अनेक मनुष्य साथ मिल जाते हैं। (परदा ऊँचा होता है और भगवान दिखते हैं।) श्रेणिक - बोलिये, महावीर भगवान की जय ! (सब वंदन करके बैठते हैं। स्तुति करते हैं।) मंगल स्वरूपी देव उत्तम हम शरण्य जिनेश जी। तुम अधमतारण अधम मम लखि मेट जन्म कलेश जी। संसृति भ्रमण से थकित लखि निजदास की सुन लीजिये। सम्यक् दरश वर ज्ञान चारित पथविहारी कीजिये। चेलना - ॐ हीं श्रीवर्धमानजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।

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