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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ छोड़ के परसंग आज दीक्षा धरेंगे
राजपाट छोड़ि के संग वीर रहेंगे वन जंगल में हम विचरण करेंगे
चलो आज श्री वीर जिनचरण में . (गाते-गाते दोनों चले जाते हैं। परदा बन्द होता है।) .
सूत्रधार - (परदे में से) आप सभी इस नाटक द्वारा जैनधर्म की प्रभावना का आदर्श लें और....
भारत के घर-घर चेलना जैसी आदर्श माता बनें। घर-घर अभयकुमार जैसा वैरागी बालक बनें।
घर-घर जैनधर्म का प्रभाव फैले।
जैनशासन सर्वत्र जयवंत वर्ते। बोलो, श्री महावीर भगवान की जय! बोलो, जैनधर्म प्रभावक सर्व सन्तों की जय !
बोलो, जैनधर्म की जय! .
बिना सम्यक्त्व के मानव तेरा जीवन निरर्थक है। अंक बिन सैकड़ों बिंदी का होना जिम निरर्थक है ।।टेक॥ देव गुरु शास्त्र क्या कहते नहीं सुनता फिरे ऐंठा। जन्म घर जैन के पाकर बपौती को भी खो बैठा। अरे तूपद प्रथम पाक्षिक सम्हाला क्यों न अबतक है।बिना। जैन दर्शन समझ करके तुझे सम्यक्त्व लेना था। प्रथम से भी प्रथम तुझको सभी तज ये ही करना था। अरे मौका सुहाना यह मिला तुझको अमोलक है। बिना॥ भिन्नता जीव अरु तन की जिसे अनुभव में आई है। उसी ने मोक्ष मारग में करी सम्यक् कमाई है। 'प्रेम' लौकिक अलौकिक का वही सचमुच में ज्ञायक है।बिना। .
- प्रेमचन्द जैन, वत्सल