Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 75
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ सम्यक्त्व हुआ है। उन्होंने अभी तीर्थंकर नामकर्म का बंध किया है। एक भव बाद ये तीर्थंकर होकर मोक्ष पधारेंगे। चेलना - अहो ! धन्य-धन्य ! (सब खड़े होकर चले जाते हैं। परदा बन्द होता है।) सप्तम दृश्य महारानी चेलना और अभयकुमार का वैराग्य (महाराज श्रेणिक बैठे हैं, वहाँ अभयकुमार आता है।) अभय - पिताजी ! भगवान् की दिव्यध्वनि में जब से मैंने यह सुना है कि मैं इसी भव का मोक्षगामी हूँ, तभी से मेरा मन इस संसार से उठ गया है। मैं अब यह संसार स्वप्न में भी देखूगा नहीं, बाहर के भाव तो अनंत बार किये। अब मेरा परिणमन अन्दर ढलता है। अब तो मैं मुनि होकर आत्मा के अतीन्द्रिय आनन्द का भोग करूँगा। पिताजी ! मुझे स्वीकृति प्रदान करो। श्रेणिक- अरे कुमार ! ऐसी छोटी उम्र में क्या तुम दीक्षा लोगे? तुम्हारे बिना इस राज्य का कार्यभार व वैभव कौन सँभालेगा ? बेटा! अभी तो मेरे साथ राज्य भोगो, बाद में दीक्षा लेना। अभय - नहीं-नहीं, पिताजी ! चैतन्य के आनन्द के सिवाय अब और कहीं मेरा मन एक क्षण भी नहीं लगता। अब तो मैं एक क्षण का भी विलम्ब किये बिना आज ही चारित्र दशा को अंगीकार करूँगा। श्रेणिक - अहो, पुत्र ! धन्य है तेरा वैराग्य और तेरी दृढ़ता। पुत्र ! तेरे वैराग्य को मैं नहीं रोक सकता। तेरी चेलना नाता स्वीकृति दे तो खुशी से जाओ और आत्मा का पूर्ण हित करो। (अब अभय माता चेलना के पास जाता है। चेलनादेवी स्वाध्याय कर रही हैं।)

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