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जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२
श्रेणिक - अहो ! धन्य है, एक-एक प्रजाजन धन्य है ।
नगरसेठ - महाराज ! दूसरी बात यह है कि समस्त प्रजाजनों को महापवित्र जैनधर्म की प्राप्ति चेलना माता के प्रताप से ही हुई है । इसलिए उनका सम्मान करते हैं और उन्हें समस्त प्रजा की धर्ममाता के रूप में स्वीकार करते
हैं । (हर्षनाद)
श्रेणिक - बराबर है सेठजी ! मुझको और समस्त प्रजा को महारानी के प्रताप से ही जैनधर्म की प्राप्ति हुई है । आपने उनका सम्मान किया है। वह योग्य ही है। (दूर से या परदे से वाद्ययंत्रों का नाद ।) ( सामने से श्रीमाली प्रवेश
करता है ।) माली बधाई, महाराज बधाई !
महाराज ! सबको आनन्द उत्पन्न हो ऐसी बधाई लाया हूँ ।
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त्रिलोकीनाथ देवाधिदेव भगवान १००८ श्री महावीर परमात्मा का समवशरण सहित अपनी नगरी के उद्यान में पदार्पण हुआ । ( श्रेणिक सहित सब खड़े हो जाते हैं ।)
श्रेणिक अहो ! भगवान पधारे ! धन्य घड़ी ! धन्य भाग्य ! नमस्कार हो त्रिलोकी नाथ भगवान की जय हो !
( जरा-सा चलकर ) नमोऽस्तु ! नमोऽस्तु ! नमोऽस्तु !
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