Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 50
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ चेतो और हमारी सलाह मान कर एकान्तमत स्वीकार करो। इसमें ही आपका हित है। यदि आप एकान्तमत को स्वीकार नहीं करोगी, तो आप पर भयंकर आफत आ पड़ेगी। चेलना- (क्रोध से) क्या आप मुझको भय दिखाकर मेरा धर्म छुड़ाना चाहते हो ? ऐसी तुच्छबुद्धि आप कहाँ से लाये? जैनधर्म के भक्त कैसे नि:शंक और निर्भय होते हैं, इसका तो अभी आपको ज्ञान ही नहीं है। (शांतभाव से) जरा सुनो। जैनधर्म के भक्त को जगत का कोई लोभ और जगत की कोई प्रतिकूलता भी धर्म से नहीं डिगा सकती है। वीतरागी जैनधर्म के भक्त सम्यग्दृष्टि जीव ऐसे नि:शंक और निर्भय होते हैं कि तीनलोक में खलबली मच जाए, ऐसा भयंकर वज्रपात हो तो भी अपने स्वभाव से च्युत नहीं होते। ____ एकान्तीगुरु- (तेज स्वर में) सुनलो, महारानी ! आपको क्षणिकवाद अंगीकार करना ही पड़ेगा, नहीं तो हम महाराज के कान भरेंगे और आपको अपमानित होकर यह राजपाट भी छोड़ना पड़ेगा, इसलिए आप अभी भी मान जाओ और एकान्तमत को स्वीकार कर लो। चेलना - मेरे जैनधर्म के समक्ष मुझको जगत के किसी मानअपमान की चिन्ता नहीं। लाखों-करोड़ों प्रतिकूलताओं का भय दिखाकर भी आप मुझे मेरे धर्म से नहीं डिगा सकते। हमारे धर्म में हम नि:शंक हैं और जगत में निर्भय हैं, सुनो निःशंक हैं सद्दृष्टि बस, इसलिए ही निर्भय रहें। वे सप्तभय से मुक्त हैं, इसलिए ही निःशंक हैं। अभय - और सुनो - चाहे विविध बीमारियाँ, निजदेह में आकर बसें। चाहे हमारी सम्पदा, इस वक्त ही जाती रहे। चाहे सगे सम्बन्धी परिजन, का वियोग मुझे बने।

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