Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 53
________________ 51 जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ (एकान्ती गुरु-शिष्य यह सुनकर क्षुब्ध होते हुए एक-दूसरे की ओर ताकते रह जाते हैं।) एकान्ती गुरु - (खेद से) यह तो हम नहीं जान सकते। अभय - (व्यंग्य से) देखो, महाराज ! स्थूल वस्तु को भी आप नहीं जान सकते तो सर्वज्ञ होने का दावा किसलिए करते हो ? . एकान्ती गुरु - जरूर मोचड़ी तुम्हीं में से किसी ने छिपाई हैं। एकान्ती गुरु का शिष्य - महारानीजी ! आपने दगा कर हमारा अपमान किया है। चेलना- नहीं नहीं महाराज ! आपके अपमान के लिए हमने कुछ भी नहीं किया है, परन्तु हमने तो आपकी सर्वज्ञता की परीक्षा करके आपको यह अवश्य बताया है कि सर्वज्ञता के नाम से आप कैसे भ्रम का सेवन कर रहे हो। अभय - (व्यंग्य से) हाँ, और अब आपके भक्त मेरे पिताजी को भी मालूम पड़ेगा कि आप उनके कैसे गुरु हैं ? एकान्ती गुरु - (क्रोध से) महारानी ! घर पर बुलाकर आपने हमारा अपमान किया है, परन्तु याद रखना कि हम भी हमारे अपमान का बदला लेकर रहेंगे। (एकान्ती गुरु-शिष्य आपे से बाहर होकर तेजी से श्रेणिक के पास जाने के लिए श्रेणिक के कक्ष में चले जाते हैं।) श्रेणिक - (खड़े होकर) पधारो महाराज ! भोजन कर आए? एकान्ती - हाँ राजन् ! श्रेणिक - महाराज ! भोजन के बाद आपने चेलना को एकान्त धर्म का क्या उपदेश दिया ? एकान्ती – राजन् ! चेलना रानी को एकान्त धर्म स्वीकार कराने

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