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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२
श्रेणिक - खड़ी रहो देवी ! मैं भी आपके साथ आता है। और आपको मुनिराज का स्थान बताता हूँ।
अभय - बहुत अच्छा पिताजी ! चलो।
(सभी लाइटें बंद कर दी जाती हैं। सब हाथ में टार्च लेकर चलते हैं। अन्दर जाकर परदे की दूसरी तरफ से मुनिराज को खोजते-खोजते बाहर आते हैं। तथा मंद-मंद ध्वनि से निम्न गीत गुन-गुनाते हैं। फिर धीरे-धीरे प्रकाश होता है अर्थात् सबेरा हो जाता है और एक चित्र में मुनिराज दिखाये जाते हैं।)
चेलना-अरे देखो, देखो! मुनिराज तो ऐसे के ऐसे ध्यान में विराज रहे हैं। अभय - जय हो ! यशोधर मुनिराज की जय हो !
चेलना - कुमार ! चलो, सर्प को शीघ्र ही दूर करें।
(श्रेणिक हाथ जोड़कर खड़े-खड़े देख रहे हैं। चेलना तथा अभय दोनों लकड़ी से सर्प को दूर कर रहे हैं।)
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SM-15
अभय - अहा मुनिराज ! धन्य है आपकी वीतरागता ! चेलना - पुत्र ! चलो, अब मुनिराज के शरीर को साफ करें।
(पीछी से शरीर को साफ करते हैं। बाद में वंदन करके बैठ जाते हैं। श्रेणिक एक तरफ स्तब्ध से खड़े हैं।)
चेलना - बैठो महाराज ! मुनिराज तो अभी ध्यान में हैं। अभी उनका ध्यान पूरा होगा। (श्रेणिक बैठ जाते हैं।)
चेलना - (अभयकुमार से) हम मुनिराज की भक्ति करें।