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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२
श्रेणिक- हाँ देवी ! आज मैं जंगल शिकार करने गया था। वहाँ एक विचित्र-सा बनाव बन गया।
चेलना - क्या बात है महाराज ! जल्दी कहो। श्रेणिक - वहाँ जंगल में हमने एक जैनमुनि को देखा।
चेलना- (प्रसन्नता से) मेरे गुरु के दर्शन हुए, वाह ! बाद में क्या हुआ ?
श्रेणिक- बाद में तो जैसे आपने मेरे गुरु का अपमान किया, वैसे ही मैंने भी तुम्हारे गुरु का अपमान कर बदला ले लिया।
चेलना - (दुःखी होकर) अरे रे, आपने ये क्या किया महाराज?
श्रेणिक - सुनो देवी ! पहले तो हमने उनके ऊपर शिकारी कुत्ते छोड़े, पर वे कुत्ते तो उनको देखते ही एकदम शान्त हो गए।
चेलना- (हर्ष से) वाह, धन्य मेरे गुरु का प्रभाव! धन्यवेवीतरागी मुनिराज!
श्रेणिक-चेलना ! पूरी बात तो सुनो। बाद में तो मैंने एक भयंकर काला नाग लेकर तुम्हारे गुरू के गले में डाल दिया।
चेलना – हैं ? क्या ? 'रे गुरु के गले में आपने नाग डाला ? अरेरे..! धिक्कार है तुम्हें, धिक्कार है इस संसार को। अरेरे..! इससे तो मैंने कुँवारी रहकर दीक्षा ले ली होती तो अच्छा रहता। अरे राजन् ! आपने यह क्या किया ? __ अभय - धैर्य रखो, माता ! अब हमें शीघ्र ही कोई उपाय करना चाहिए।
चेलना- अरे भाई ! अपने गुरू के ऊपर घोर उपसर्ग आया, ऐसी रात्रि में हम क्या करेंगे ? जंगल में कहाँ जाएँगे ? मुनिराज को कहाँ खोजेंगे? अरे, उन मुनिराज का क्या हुआ होगा ? हे भगवन् !...(कहतेकहते बेहोश हो जाती है।)