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जैनधर्म की कहानियाँ भाग-१२ आपने महान कृपा की है। अब इसकी भावना जगाने वाला कोई प्रेरक भजन भी सुनाओ न।
चेलना - जरूर बेटा ? तुम भी मेरे साथ दुहराना। अभय - जी माता ! आप शुरु कीजिये।
(दोनों भजन गाते हैं।) धिक् ! धिक् ! जीवन समकित बिना। दान शील तप व्रत श्रुत पूजा, आतमहित न एक गिना।।टेक॥ ज्यों बिनु कंत कामिनी शोभा, अंबुज बिनु सरवर सूना। जैसे बिना एकड़े बिंदी, त्यों समकित बिनु सरब गुना ॥२॥ जैसे भूप बिना सब सेना, जीव बिना मन्दिर चुनना। जैसे चंद बिहूनी रजनी, इन्हें आदि जानो निपुना ॥३॥ देव-जिनेन्द्र साधु-गुरु करुणाधर्म-राग व्योहार भना। निहचै देवधरमगुरु आतम, द्यानत गहिमन-वचन-तना ॥४॥
(भजन पूरा होने पर कुछ क्षण उस पर विचार करते हैं। फिर...) चेलना - बेटा अभय ! अभी तक कोई समाचार नहीं आए? अभय – (बाहर झांकते हुए) माता, एक गुप्तचर आ रहा है।
पंचम दृश्य उपसर्गविजयी मुनिराज का उपसर्ग दूर एवं राजा श्रेणिक द्वारा जैनधर्म अंगीकार
(गुप्तचर आते हैं।) गुप्तचर - (खेद से) माता-माता ! एक गम्भीर घटना घट गई है, उसके समाचार देने के लिए महाराज स्वयं ही आ रहे हैं।
___(श्रेणिक राजा का प्रवेश) चेलना - पधारो महाराज ! क्या बात है? आज...? .