Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 30
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२ शक्ति एवं विद्या के बल से पर्वत को उखाड़ने लगा । उसका दुष्कृत देख महाविवेकी, धर्ममूर्ति बालि मुनिराज को यह विचार आया कि ये तीन चौबीसी के अगणित अनुपम भव्य जिनालय, अनेक गुणों के निधान मुनिराज अनेक स्थानों में आत्ममग्न विराजमान हैं इत्यादि - ये सभी नष्ट हो जायेंगे तथा इस पर्वत के निवासी लाखों जीव प्राणहीन हो जावेंगे। अनेक निर्दोष, मूक पशु इसके क्रोध के ग्रास बन जावेंगे। दशानन सर्व विनाशकारी करतूत को रोकने के TAT लिए श्री बालि मुनिराज ने अपनी कायबलऋद्धि का प्रयोग किया। ओहि 28 ― प्रश्न क्या मुनिराज भी ऋद्धियों का प्रयोग करते हैं ? उत्तर - मुनिराजों को तो अपनी स्वरूप आराधना से फुर्सत ही नहीं है, परन्तु धर्म पर आये संकट को दूर करने के लिए उन्हें अपनी ऋद्धियों का प्रयोग कभी-कभी परहित में करना पड़ता है। प्रश्न - जब उनके पास अस्त्र-शस्त्रादि कुछ भी नहीं होते, तब फिर उन्होंने उसका प्रयोग कैसे किया और वह प्रयोग भी क्या था ?

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