Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 12
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 37
________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - १२ प्रथम दृश्य (जैनधर्म के वियोग में दुःखी महारानी चेलना) 35 (रंगमंच पर सूत्रधार का प्रवेश ) सूत्रधार - बोलिये, भगवान महावीर स्वामी की जय ! लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व जब भगवान महावीर इस भारतभूमि में तीर्थंकर रूप में विचरते थे, उस समय का यह प्रसंग है। महारानी चेलना द्वारा जैनधर्म की जो महान प्रभावना हुई, वह यहाँ संवाद द्वारा दिखाई जा रही है। चेलना देवी भगवान महावीर की मौसी, सती चंदना की बहन, श्रेणिक राजा की महारानी, राजगृही के राजोद्यान में उदासचित्त बैठी हैं। वे क्या विचार कर रही हैं, यह आप उन्हीं के मुख से सुनिये । (चेलनादेवी विचार मग्न उदासचित्त बैठी हैं । वह स्वयं स्वयं से ही कह रही हैं ।) चेलना - अरे रे ! जैनधर्म की प्रभावना बिना यहाँ बहुत सुन यह सान सा लग रहा है। यह राजवैभव .... राजमहल..... ये उपभोग की सामग्री... इनमें मुझे रंचमात्र भी चैन नहीं मिलता है। हे भगवान! हे वीतरागी जिनदेव ! - नाटक के पात्र १. रानी चेलना २. राजा श्रेणिक ३. अभयकुमार ४. एकान्तमतावलम्बी गुरु ५. उनका शिष्य ६. दीवानजी ७. नगर सेठ ८. दो सैनिक ९. अभय मार की बहिन १०. एक सखी ११. माली १२. दूती । आवश्यक सामग्री - कृत्रिम नाग, मुनिराज का स्टेच्यु या चित्र आदि ।

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