Book Title: Jain Dharm Darshan Part 05 Author(s): Nirmala Jain Publisher: Adinath Jain Trust View full book textPage 9
________________ अनुमोदना ऊँ ऐं नमः "स्वाध्याय परम तप" "ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः'' | ज्ञानीजनों के लघुसूत्र गंभीर अर्थ युक्त होते हैं। द्वादशप्रकार के तप में स्वाध्याय को श्रेष्ठ तप माना है | कारण कि स्व अध्ययन याने निजात्म स्वरूप का अध्ययन करना | जिनागमों के माध्यम से स्वतत्त्व नवतत्त्वादि के स्वरूप का चिंतन-मनन-निदिध्यासन करने से अनंत कर्मों की निर्जरा होती है और निर्जरा से मोक्ष होता है। मैंने जैन धर्म दर्शन (भाग 3-5) का अवलोकन किया है। अतः आदिनाथ जैन ट्रस्ट के द्वारा त्रिवर्षीय कोर्स के माध्यम से जन जन में ज्ञानार्जन का प्रयास अभिनंदनीय है । अज्ञानदशा में तत्त्व के स्वरूप को बोध न होने पर जीवात्माएँ प्रतिपल कर्मों का बंध करती है यह जीवों को ही ज्ञात नहीं होता है परन्तु स्वाध्याय ऐसी श्रेष्ठ पूंजी है जिससे तत्त्व स्वरूप के ज्ञान द्वारा ज्ञानदशा प्राप्त होती है और ज्ञान के द्वारा सही क्रिया का बोध होने पर आत्मा ज्ञान किया उभय को आत्मसात करके मोक्ष मार्ग की ओर प्रगति करके परमपद को प्राप्त करके ही रहता है। इस कोर्स के पठन से सभी अधिक से अधिक स्वयं अध्ययन करें - अन्य को अध्यापन कराकर कर्म निर्जरा करें। इसी मंगलभावों के साथ हार्दिक अनुमोदना | अनुमोदना | अनुमोदना । - साध्वी श्री जिनशिशुप्रज्ञाPage Navigation
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