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सांख्यतत्त्वमीमांसा
४१९ उत्पन्न करती है। कारणरूप प्रधान 'अव्यक्त' कहा जाता है और कार्यरूप 'व्यक्त' । 'इस प्रधानसे, जो कि व्यापक, निष्क्रिय और एक है, सबसे पहले विषयको निश्चय करनेवाली बुद्धि उत्पन्न होती है। इसे महान् कहते हैं। महान्से 'मैं सुन्दर हूँ, मैं दर्शनीय हूँ' इत्यादि अहंकार पैदा होता है । अहंकारसे शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध ये पाँच तन्मात्राएँ; स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ; वचन, हाथ, पैर, मलस्थान और मूत्रस्थान ये पांच कर्मेन्द्रियाँ तथा मन इस प्रकार सोलह गण पैदा होते है। इनमें शब्दतन्मात्रासे आकाश, स्पर्शतन्मात्रासे वायु, रसतन्मात्रासे जल, रूपतन्मात्रासे अग्नि और गन्धतन्मात्रासे पृथ्वी इस प्रकार पांच महाभूत उत्पन्न होते हैं। प्रकृतिसे उत्पन्न होनेवाले महान् आदि तेईस विकार प्रकृतिके ही परिणाम हैं और उत्पत्तिके पहले प्रकृतिरूप कारणमें इनका सद्भाव है । इसीलिए सांख्य सत्कार्यवादी माने जाते हैं । इस सत्कार्यवादको सिद्ध करनेके लिए निम्नलिखित पांच हेतु दिये जाते हैं :
(१) कोई भी असत्कार्य पैदा नहीं होता। यदि कारणमें कार्य असत् हो, तो वह खरविषाणकी तरह उत्पन्न ही नहीं हो सकता।
(२) यदि कार्य असत् होता, तो लोग प्रतिनियत उपादान कारणोंका ग्रहण क्यों करते ? कोदोंके अंकुरके लिए कोदोंके बीजका बोया जाना और चनेके बीजका न बोया जाना, इस बातका प्रमाण है कि कारणमें कार्य सत है।
(३) यदि कारणमें कार्य असत् है, तो सभी कारणोंसे सभी कार्य उत्पन्न होना चाहिये थे। लेकिन सबसे सब कार्य उत्पन्न नहीं होते । १. "प्रकृतेर्महान् ततोऽहङ्कारः तस्माद् गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्च भूतानि ॥"
-सांख्यका० ३२ । २. सांख्यका०९।