Book Title: Jain Bhasha Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 52
________________ जैन शब्ददर्शन ३९ स्मरणीय है कि जो 'नाम' एक दृष्टि से जातिवाचक है वही दूसरी दृष्टि से व्यक्तिवाचक (विशेष) हो जाता है । 'भारतीय' यह नाम भारतीयों की दृष्टि से सामान्य या जातिवाचक है जबकि मनुष्यों की दृष्टि से विशेष या व्यक्तिवाचक है। अनुयोगद्वारसूत्र में इस तथ्य को अनेक उदाहरणों से स्पष्ट किया गया है और यह बताया गया है कि सामान्य और विशेष या जाति और व्यक्ति की अवधारणा सापेक्ष है। नामों का एक द्विविध वर्गीकरण हमें विशेषावश्यक भाष्य में भी मिलता है, जहाँ पदों को वाचकपद एवं द्योतकपद के रूप में दो भागों में वर्गीकृत किया गया है। 'वृक्ष खड़ा हैं-यह वाचक पद का उदाहरण है, जबकि प्र० च० आदि द्योतक पद कहे गये हैं। त्रिविधनाम-नामों का त्रिविध वर्गीकरण निम्न दो आधारों पर किया गया है(१) द्रव्य, गुण और पर्याय के आधार पर (अ) द्रव्यवाचक नाम-जैसे : जीव, पुद्गल, आकाश आदि । (ब) गुणवाचक नाम-जैसे : ठण्डा, गरम, काला, नीला, खट्टा, मीठा आदि । गुणवाचक नामों में वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, आकृति आदि के आधार पर विविध भेद हैं।। - (स) पर्यायवाचक नाम (अवस्थास्चक नाम)-पर्यायवाचक नाम वस्तु/सत्ता की अवस्था विशेष को सूचित करते हैं। जैसे : स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, युवा आदि । (२) लिङ्ग के आधार पर (अ) पुंलिङ्ग नाम-जैसे : राजा, गिरि, विष्णु । (ब) स्त्रीलिङ्ग नाम--जैसे : माला, श्री, लक्ष्मी, वायु । (स) नपुंसकलिङ्ग नाम-जैसे : वन, मधु । चतुर्विधनाम-नामों का चतुर्विध वर्गीकरण संधिप्रक्रिया में वर्गों के आगम-लोप आदि के आधार पर शब्द-निर्माण की प्रक्रिया को समझाता है । इसके निम्न चार भेद हैं (अ) आगम-किन्हीं शब्दों की रचना सन्धिप्रक्रिया में किसी नये वर्ण के आगम के द्वारा होती है । जैसे : पद्माणि । (ब) लोप-किन्हीं शब्दों की रचना सन्धिप्रक्रिया में किसी वर्ण के लोप के द्वारा होती है। जैसे : घटोऽत्र। (स) प्रकृति-किन्हीं शब्दों की रचना सन्धिप्रक्रिया में बिना किसी परिवर्तन के यथावत् होती है । सन्धि का अवसर होने पर भी सन्धि नहीं होना ही 'प्रकृति' है। यथा : माले + इमे = मालेइमे। (द) विकृति-किन्हीं पदों की रचना सन्धिप्रक्रिया में यथावत् न होकर विकृत रूप से होती है। जैसे : सा + आगता = सागता। पञ्चविषनाम-पदों को उनके स्वरूप के आधार पर पांच भागों में विभक्त किया गया है (१) नामपद/संज्ञापद (नामिक)-जो पद किसी वाक्य में स्वतन्त्र रूप में उद्देश्य या विधेय बनने के योग्य होते हैं वे नामिकपद हैं। वाक्य में प्रयुक्त नामिकपद विभक्ति युक्त होते हैं और किसी वस्तु के वाचक होते हैं । जैसे : अश्व, गज । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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