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९४ : जैन भाषादर्शन
स्वीकार नहीं किया है । वे उसे असत्य ही मानते हैं। हमारी दृष्टि में इसका आधार यह है कि दुष्ट आशय के द्वारा बोली गई भाषा चाहे वह तथ्य की संवादी क्यों न हो सत्य नहीं मानी जा सकती। वस्तुतः उपयुक्त असत्य भाषा के जो दस प्रकार बताये गये हैं वे भाषा की सत्यता या असत्यता का प्रतिपादन करने के स्थान पर उन स्थितियों को बताते हैं जिनके कारण असत्य भाषण होता है। ये वे स्थितियाँ हैं जो असत्य को जन्म देती हैं। जब भी व्यक्ति असत्य सम्भाषण करता है इनमें से किसी एक कारण के आधार पर करता है।
उपयुक्त वर्गीकरण में दो प्रकार ऐसे हैं जिन पर और अधिक विचार अपेक्षित है । इनमें आख्यायिका भाषा को असत्य कहा गया है। आख्यायिका का मतलब कथा होता है। जब व्यक्ति किसी आख्यान या कथा का चित्रण करता है तो उसमें अनेक असम्भावित कल्पनाओं को भी स्थान दे देता है और इस प्रकार का कथन प्रामाणिकता को खो देता है। उपन्यास आदि कथा साहित्य में इस प्रकार की प्रवत्ति पाई जाती है। इसी प्रकार उपघात निःसृता भाषा भी असत्य कही गई है, क्योंकि इसमें दूसरों पर मिथ्यादोषारोपण की प्रवृत्ति कार्य करती है-इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनों ने भाषा की सत्यता-असत्यता का विचार मात्र तथ्यगत सम्वादिता के आधार पर ही नहीं किया अपितु उन मुलभत कारणों के आधार पर भी किया जिससे कथन की प्रामाणिकता या सत्यता खण्डित हो जाती है। सत्य-मृषा कथन
वे कथन जिनका अर्थ उभय कोटिक हो सकता है, सत्य-मृषा कथन है। 'अश्वत्थामा मारा गया' यह महाभारत का प्रसिद्ध कथन सत्य-मृषा भाषा का उदाहरण है। वक्ता और श्रोता इसके भिन्न-भिन्न अर्थ ग्रहण कर सकते हैं। अतः जो कथन दोहरा अर्थ रखते हैं वे सत्य-मृषा-भाषा का उदाहरण हैं । इसी प्रकार अनिश्चयात्मक कथन भी इसी कोटि में आते हैं । सम्भावनात्मक कथनों को कुछ जैनाचार्यों ने सत्य का एक भेद माना है किन्तु मेरी दृष्टि में उन्हें सत्य-मृषा भाषा की कोटि में परिगणित करना चाहिए। प्रज्ञापनासूत्र में मिश्र भाषा अथवा सत्य-मषा भाषा के भी निम्न दस भेद बताये गये हैं--(१) उत्पन्न-मिश्रिता, (२) विगत-मिश्रिता, (३) उत्पन्न-विगत मिश्रिता, (४) जीव मिश्रिता, (५) अजीव मिश्रिता, (६) जीव-अजोव मिश्रिता, (७) अनन्त मिश्रिता, (८) परिमित (सीमित) मिश्रिता, (९) काल मिश्रिता और (१०) अकाल मिश्रिता।'
(१) उत्पन्न मिश्रिता-प्रज्ञापना के टीकाकारों ने उत्पन्न मिश्रिता भाषा का उदाहरण देते हुए कहा है कि पूर्णतया निश्चित संख्या का ज्ञान न होने पर कभी आनुमानिक रूप से उत्पत्ति संबंधी कथन करना उत्पन्न मिश्रिता भाषा है। जैसे-आज इस ग्राम में दसों बालकों का जन्म हुआ। वर्तमान सन्दर्भ में इसे हम आनुमानिक आकड़ों का प्रस्तुतीकरण कह सकते हैं । आनुमानिक संख्या सम्बन्धी कथन न तो पूर्णतः असत्य ही कहे जा सकते हैं और न पूर्णतः सत्य ही । अतः उन्हें मिश्र
१. सक्चामोसा णं भंते । भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा ! दसविहा पन्नत्ता, तंजहा
उप्पण्णमिस्सिया १, विगतमिस्सिया २, उप्पणविगतमिस्सिया ३, जीवमिस्सिया ४, अजीवमिस्सिया ५, जीवाजीवमिस्सिया ६, अणंतमिस्सिया ७, परित्तमिस्सिया ८, अद्धामिस्सिया ९, अद्धामिस्सिया १०।
-प्रज्ञापनासूत्र, भाषापद, १९
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