Book Title: Jain Bhasha Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 109
________________ ९६ : जैन भाषादर्शन 'न कुछ' कहकर अभिव्यक्त करने की जो प्रवृत्तियाँ हैं वे एकान्त रूप से सत्य या असत्य नहीं कही जा सकती और इसलिए मिश्र भाषा की कोटि में आती हैं। (९-१०) काल मिश्रित और अकाल मिश्रित-काल और अकाल मिश्रित कथनों के उदाहरण निम्न हो सकते हैं जैसे-सबेरा होने के पहले ही किसी व्यक्ति को जगाने के लिए कहा जाये कि भाई उठो दिन निकल आया है। अथवा किसी जल्दी की स्थिति में १० या ११ बजे भी यह कह देना कि अरे ! दोपहर हो गई। वस्तुतः उपर्युक्त सभी कथन व्यावहारिक भाषा में प्रचलित होते हैं, किन्तु उनकी सत्यता और असत्यता का एकान्त रूप से निर्धारण नहीं होता है। अतः उसे मिश्र भाषा कहा जाता है । जब कथनों को निश्चित रूप से सत्य या असत्य की कोटि में रखना सम्भव नहीं होता है तो उन्हें सत्य-मृषा कहा जाता है । असत्य-अमृषा कथन प्रज्ञापना सूत्र में कथनों के कुछ प्रारूपों को असत्य-अमृषा कहा गया है। वस्तुतः वे कथन जिन्हें सत्य या असत्य की कोटि में नहीं रखा जा सकता असत्य-अमृषा कहे जाते हैं। जो कथन किसी विधेय का विधान या निषेध नहीं करते उनका सत्यापन सम्भव नहीं होता है और जैन आचार्यों ने ऐसे कथनों को असत्य-अमृषा कहा है जैसे आदेशात्मक कथन । प्रज्ञापना में निम्न १२ प्रकार के कथनों को असत्य-अमृषा कहा गया है।' १. आमन्त्रणी _ 'आप हमारे यहाँ पधारें', 'आप हमारे विवाहोत्सव में सम्मिलित होवें-इस प्रकार आमन्त्रण देने वाले कथनों की भाषा आमन्त्रणी कही जाती है। ऐसे कथन सत्यापनीय नहीं होते। इसलिए ये सत्य या असत्य की कोटि से परे होते हैं। २. आज्ञापनीय 'दरवाजा बन्द कर दो', 'बिजली जला दो', आदि आज्ञावाचक कथन भी सत्य या असत्य की कोटि में नहीं आते। ए० जे० एयर प्रभृति आधुनिक तार्किकभाववादी विचारक भी आदेशात्मक भाषा को सत्यापनीय नहीं मानते हैं, इतना ही नहीं, उन्होंने समग्र नैतिक कथनों के भाषायी विश्लेषण के आधार पर यह सिद्ध किया है कि वे विधि या निषेध रूप में आज्ञा-सूचक या भावना-सूचक ही हैं, इसलिए वे न तो सत्य हैं और न असत्य हैं। ३. याचनीय ___ 'यह दो' इस प्रकार की याचना करने वाली भाषा भी सत्य और असत्य की कोटि से परे होती है। १. असच्चामोसा गं भंते ! भासा अपज्जत्तिया कतिविहा पन्नत्ता ? गोयमा! दुवालसविहा पन्नत्ता । तंजहा आमंतणि १, आणमणी २, जायणि ३, तह पुच्छणी य ४, पण्णवणी ५ । पच्चक्खाणी ६ भासा भासा इच्छाणुलोमा ७ य ॥ अणभिग्गहिया भासा ८ भासा य अभिग्गहमि बोद्धब्वा ९। संसयकरणी भासा १० वोगड़ ११ अब्दोगडा चेव १२ ॥-प्रज्ञापनासूत्र, भाषापद, २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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