Book Title: Jain Bhasha Darshan
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: B L Institute of Indology

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Page 88
________________ वाच्यार्थ निर्धारण के सिद्धान्त नय और निक्षेप : ७५ के लिए यदि कोई कहे कि स्त्रियाँ भीरु होती हैं तो यह कथन सामान्य स्त्री जाति के सम्बन्ध में तो सत्य माना जा सकता है किन्तु किसी स्त्री विशेष के सम्बन्ध में यह सत्य हो, आवश्यक नहीं। अतः संग्रह नय के आधार पर किये गए कथन जैसे-भारतीय गरीब हैं अथवा स्त्रियाँ भीरु होती हैं समष्टि के सम्बन्ध में ही सत्य हो सकते हैं, उन्हें उस जाति के प्रत्येक सदस्य के बारे में सत्य नहीं कहा जा सकता है। यदि कोई इन आधार वाक्यों से कि सभी भारतीय गरीब हैं और बिड़ला भारतीय है; यह निष्कर्ष निकाले कि इसलिए बिड़ला गरीब है, तो उसका यह निष्कर्ष सत्य नहीं होगा । अतः सामान्य या समष्टिगत कथनों का अर्थ समुदाय रूप से ही सत्य होता है । वह समष्टि या जाति के पृथक्-पृथक् व्यक्तियों के सम्बन्ध में सत्य भी हो सकता है और असत्य भी हो सकता है। संग्रहनय हमें यही संकेत करता है कि समष्टिगत कथनों के तात्पर्य को समष्टि के सन्दर्भ में ही समझने का ही प्रयत्न करना चाहिए और उसके आधार पर उस समष्टि के प्रत्येक सदस्य के बारे में कोई निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए। व्यवहारनय-व्यवहारनय को हम उपयोगितावादी दष्टि कह सकते हैं। वैसे जैन आचार्यों ने इसे व्यक्ति प्रधान दृष्टिकोण भी कहा है।' अर्थ प्रक्रिया के सम्बन्ध में यह नय हमें यह बताता है कि कुछ व्यक्तियों के सन्दर्भ में निकाले गए निष्कर्षों एवं कथनों को समष्टि के अर्थ में सत्य नहीं माना जाना चाहिए। साथ ही व्यवहार नय कथन के शब्दार्थं पर न जाकर वक्ता की भावना या लोकपरम्परा (अभिसमय) को प्रमखता देता है।२ व्यवहार भाषा के अनेक उदाहरण पूर्व में दिये जा चुके हैं । हम कहते हैं कि घी के घड़े में लड्डू रखे हैं यहाँ घो के घड़े का अर्थ ठीक वैसा नहीं है जैसा कि मिट्टी के घड़े का अर्थ है । यहाँ घी के घड़े का तात्पर्य वह घड़ा है जिसमें पहले घी रखा जाता था। ऋजुसूत्रनय-ऋजुसूत्रनय को मुख्यतः पर्यायार्थिक दृष्टिकोण का प्रतिपादक कहा जाता है और उसे बौद्ध दर्शन का समर्थक बताया जाता है । ऋजुसूत्रनय वर्तमान स्थितियों को दृष्टि में रख कर कोई प्रकथन करता है। उदाहरण के लिए 'भारतीय व्यापारी प्रामाणिक नहीं हैं'-यह कथन केवल वर्तमान सन्दर्भ में ही सत्य हो सकता है। इस कथन के आधार पर हम भूतकालोन और भविष्यकालीन भारतीय व्यापारियों के चरित्र का निर्धारण नहीं कर सकते। ऋजुसूत्रनय हमें यह बताता है कि उसके आधार पर कथित कोई भी वाक्य अपने तात्कालिक सन्दर्भ में सत्य होता है. अन्य कालिक सन्दर्भो में नहीं। जो वाक्य जिस कालिक सन्दर्भ में कहा गया है, उसके वाक्यार्थ का निश्चय उसी कालिक सन्दर्भ में होना काहिए। शब्द नय-नय सिद्धान्त के उपयुक्त चार नय मुख्यतः शब्द के वाच्य-विषय (अर्थ) से सम्बन्धित है, जब कि शेष तीन नयों का सम्बन्ध शब्द के वाच्यार्थ (Meaning) से है। शब्दनय यह बताता है शब्दों का वाच्यार्थ उनकी क्रिया या विभक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकता है। १. संग्रहेण गोचरीकृतानामर्थानां विधिपूर्वकमवहरणं येनाभिसन्धिना क्रियते स व्यवहारः ।। -जैनतर्कभाषा नयपरिच्छेद पृ० ६१ । २. लौकिकसम उपचारप्रायो विस्तृतार्थो व्यवहार-तत्त्वार्थ भाष्य ११३५ । ३. वर्तमानक्षणस्थायिपर्यायमात्र प्राधान्यतः सूचयन्नभिप्राय ऋजुसूत्रः।-जैनतर्कभाषा, नयपरिच्छेद पृ०६१। ४. कालादिभेदेन ध्वनेरर्थ भेदं प्रतिपाद्यमानः शब्दः । कालकारकलिंग सङ्ख्यापुरुषोपसर्गाः कालादयः। -जैनतर्कभाषा नयपरिच्छेद पृ० ६१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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