Book Title: Jage Yuva Shakti
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

Previous | Next

Page 13
________________ (११) बचपन अर्जन का समय है तो यौवन सर्जन का समय है । तरुण अवस्था नव-सर्जन की वेला है । बचपन शिशिर ऋतु है, तो जवानी बसन्त ऋतु है । बसन्त में सभी वृक्ष, लता, पौधे खिल जाते हैं, विकसित होकर झूमने लगते नये-नये फूल व फलों से अपना सौन्दर्य प्रकट करते हैं, उसी प्रकार यौवन भी 'उत्साह व स्फूर्ति की लहरों से तरंगित होकर कुछ न कुछ करने को ललकता है, निर्माण करने को आतुर होता है । यदि जवानी में किसी को निर्माण करने का अवसर नहीं मिलता है, सर्जन करने की सुविधा व मार्गदर्शन नहीं मिलता है, तो उसकी शक्तियाँ कुण्ठित हो जाती हैं, कुण्ठा व आन्तरिक तनाव से वह भीतर ही भीतर घुटन महसूस करता है । मानव-जीवन भी तीन अवस्थाओं में गुजरता है, बचपन अधूरा होता है, बुढ़ापा ,

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68