Book Title: Jage Yuva Shakti
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 51
________________ (४९) आखिर पहरेदारों ने कांपते हुए स्वीकार किया, हमने सोचा- चोर तीन पेटी छोड़ गया है, तो वह हम बांट लेवें और पाँच पेटी की चोरी बता दें.... । राजा ने पहरेदारों को चोरी के अपराध में जेल भेज दिया और चोर मणिशेखर को सम्मानपूर्वक अपने पास आसन पर बिठाया, उससे कहा-मैं तुम्हारी सच्चाई और निर्भीकता से बहुत प्रसन्न हूँ । तुम मेरा मंत्री पद स्वीकार करो। सभी प्रजाजन चकित थे, चोर और मंत्री पद । परन्तु राजा का दृढ़ विश्वास था। चोर सत्यवादी है, पाप करके भी पाप को स्वीकारता है तो कल पाप को छोड़ भी 'देगा और सदा निर्भीक, साहसी रहेगा। सत्यवादी आदतवश गलत काम कर भी लेता है तो भी वह धीरे-धीरे खुद को सुधार लेगा और एक दिन सबके लिए आदर्श बन जायेगा । जैसे सीलन, सडांध, कीटाणु आदि अंधेरे में पलते हैं, वैसे ही पाप आदि

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