Book Title: Jage Yuva Shakti Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 58
________________ युवावर्ग आज इन दोनों प्रकार की मनःस्थिति में है । पहला-जिसे धर्म व नीति का कोई विचार ही नहीं है वह उद्दाम लालसाओं के वश हुआ बड़े से बड़ा पाप करके भी अपने पाप पर पछताता नहीं। दूसरा वर्ग-पाप करते समय संकोच करता है, कुछ सोचता भी है, किन्तु परिस्थितियों की मजबूरी कहें या उसकी मानसिक कमजोरी कहें-वह अनीति का शिकार हो जाता है। एक तीसरा वर्ग ऐसा भी है-जिसे हम आटे में नमक के बराबर भी मान सकते हैं जो हर कीमत पर अपनी राष्ट्रभक्ति, देशप्रेम, धर्म एवं नैतिकता की रक्षा करना चाहता है और उसके लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी भी करने को तैयार रहता है । ऐसे युवक बहुत ही कम मिलते हैं; परन्तु अभाव नहीं है।Page Navigation
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