Book Title: Jage Yuva Shakti Author(s): Devendramuni Publisher: Tarak Guru Jain GranthalayPage 49
________________ (४७) मैंने साफ कर दिया । तीन पेटी ज्यूं की त्यूं छोड़ दीं। कहां है, वह माल ? वह पहुँच गया अपने ठिकाने ! राजा को अब पक्का भरोसा हो गयाआज किसी पक्के नशेड़ी से पाला पड़ा है, बार-बार वही मिल रहा है ! कितनी ऊंची डींग मार रहा है, जहां इतना जबर्दस्त पहरा बैठा है, परिन्दा भी पर नहीं मार सकता, वहीं यह नशेड़ी राज्य कोषगार में चोरी करेगा, माल भी मिल गया इसे । तीन पेटी छोड़ दीं, दो पेटी का माल बिहारी कर दिया..... कैसी गप्प....अहा हा....राजा आगे निकल गया । मणिशेखर भी अपने घर आकर सो गया । प्रातः राजा को खबर मिली, खजाने में से पाँच पेटियाँ चोरी हो गई । राजा सुनते ही सकते में आ गया । उसे विश्वास हो गया, रातवाला चोर नशेड़ी नहीं, चोर ही था । मगर सच्चा चोर ! राजा ने गुणशेखर सेठ का पता लगवायाPage Navigation
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